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________________ - चतीन्द्रसूरिस्मारकाव्य - जैन आगम एवं साहिल एवं उत्तरपश्चिमी भारत में फैला। अतः आवश्यकता हुई अर्धमागधी प्रान्तों के लोग भी आसानी से समझ सकें। अत: बुद्धवचन मूलतः आगमों के शौरसेनी और महाराष्ट्री रूपान्तरण की, न कि शौरसेनी मागधी में थे, न कि शौरसेनी में। बौद्ध त्रिपिटक की पालि और जैन आगमों के अर्धमागधी रूपान्तरण की। सत्य तो यह है कि अर्धमागधी आगमों की अर्धमागधी में कितना साम्य है, यह तो सुत्तनिपात और आगम ही शौरसेनी या महाराष्ट्री में रूपान्तरित हुए न कि शौरसेनी इसिभासियाई के तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है। प्राचीन आगम अर्धमागधी में रूपान्तरित हुए। अत: ऐतिहासिक तथ्यों की पालि ग्रन्थों एवं प्राचीन अर्धमागधी आगमों की भाषा में अधिक दूरी अवहेलना कर मात्र कुतर्क करना कहाँ तक उचित है? नहीं है। जिस समय अर्धमागधी और पालि में ग्रन्थ रचना हो रही थी, उस समय तक शौरसेनी एक बोली थी, न कि एक साहित्यिक बुद्ध वचनों की मूल भाषा मागधी थी, न कि शौरसेनी भाषा। साहित्यिक भाषा के रूप में उसका जन्म तो ईसा की तीसरी शौरसेनी को मूलभाषा एवं मागधी से प्राचीन सिद्ध करने हेतु शताब्दी के बाद ही हुआ है। संस्कृत के पश्चात् सर्वप्रथम साहित्यिक आदरणीय प्रो. नथमल जी टाटिया के नाम से यह भी प्रचारित किया भाषा के रूप में यदि कोई भाषा विकसित हुई है तो वे अर्धमागधी. जा रहा है कि “शौरसेनी पालि भाषा की जननी है- यह मेरा स्पष्ट एवं पालि ही हैं, न कि शौरसेनी। शौरसेनी का कोई भी ग्रन्थ या चिन्तन है। पहले बौद्धों के ग्रन्थ शौरसेनी में थे, उनको जला दिया नाटकों के अंश ईसा की दूसरी-तीसरी शती से पूर्व का नहीं हैगया और पालि में लिखा गया।” (प्राकृत-विद्या, जुलाई-सितम्बर ९६, जबकि पालि त्रिपिटक और अर्धमागधी आगम-साहित्य के अनेक ग्रन्थ पृ.१०।) ई.पू. तीसरी-चौथी शती में निर्मित हो चुके थे। ___टॉटिया जी जैसा बौद्ध-विद्या का प्रकाण्ड विद्वान् ऐसी कपोलकल्पित बात कैसे कह सकता है? यह विचारणीय है। क्या ऐसा कोई 'प्रकृतिः शौरसेनी' का सम्यक् अर्थ भी अभिलेखीय या साहित्यिक प्रमाण उपलब्ध है, जिसके आधार पर जो विद्वान् मागधी को शौरसेनी से परवर्ती एवं उसी से विकसित यह कहा जा सकता है कि मूल बुद्धवचन शौरसेनी में थे। यदि हो मानते हैं वे अपने कथन का आधार वररुचि (लगभग ७वीं शती) के तो आदरणीय टॉटिया जी या भाई सुदीप जी उसे प्रस्तुत करें, अन्यथा प्राकृतप्रकाश और हेमचन्द्र (लगभग १२वीं शताब्दी) के प्राकृतव्याकरण ऐसी आधारहीन बातें करना विद्वानों के लिये शोभनीय नहीं है। यह के निम्न सूत्रों को बताते हैं - बात तो बौद्ध विद्वान् स्वीकार करते हैं कि मूल बुद्धवचन 'मागधी' अ. १. प्रकृति: शौरसेनी ।।१०/२।। में थे और कालान्तर में उनकी भाषा को संस्कारित करके पालि में अस्याः पैशाच्याः प्रकृतिः शौरसेनी। स्थितायां शौरसेन्यां लिखा गया। यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि जिस प्रकार मागधी और पैशाचीलक्षणं प्रवर्तितव्यम् । अर्धमागधी में किञ्चित् अन्तर है, उसी प्रकार 'मागधी' और 'पालि' २. प्रकृति: शौरसेना ।।११/२।। में भी किञ्चित् अन्तर है, वस्तुत: 'पालि' भगवान् बुद्ध की मूल भाषा अस्याः मागध्या "कृति: शौरसेनीति वेदितव्यम् । 'मागधी' का एक संस्कारित रूप ही है। यही कारण है कि कुछ विद्वान् वररुचिकृत 'प्राकृत प्रकाश'। पालि को मागधी का ही एक प्रकार मानते हैं, दोनों में बहुत अधिक ब. १. शेषं शौरसेनीवत् ।।८/४/३०२।। अन्तर नहीं है। पालि, संस्कृत और मागधी की मध्यवर्ती भाषा है या मागध्या यदुक्तं, ततोऽन्यच्छौरसेनीवद् द्रष्टव्यम् । मागधी का ही साहित्यिक रूप है। यह तो प्रमाणसिद्ध है कि भगवान् २. शेषं शौरसेनीवत् ।।८/४/३२३।। बुद्ध ने मागधी में ही अपने उपदेश दिये थे- क्योकि उनकी जन्मस्थली पैशाच्यां यदुक्तं, तओअन्यच्छेषं पैशाच्या शौरसेनीवद् भवति। और कार्यस्थली दोनों मगध और उसका निकटवर्ती प्रदेश ही था। ३. शेषं शौरसेनीवत् ।।८/४/४४६।। बौद्ध विद्वानों का स्पष्ट मन्तव्य है कि मागधी ही मूल भाषा है। इस अपभ्रंशो प्राय: + शौरसेनीवत् कार्य भवति। सम्बन्ध में बुद्धघोष का निम्न कथन सबसे बड़ा प्रमाण है - अप्रभंशभाषायां प्राय: शौरसेनीभाषातुल्यकार्य जायते; शौरसेनीसा मागधी मूलभासा नरायाय आदिकप्पिका। भाषायाः ये नियमाः सन्ति, तेषां प्रवृत्तिरपभ्रंशभाषायामपि ब्रह्मणो च अस्सुतालापा संबुद्धा चापि भासरे ।। जायते। - हेमचन्द्रकृत 'प्राकृतव्याकरण'। अर्थात् मागधी ही मूलभाषा है, जो सृष्टि के प्रारम्भ में उत्पन्न अतः इस प्रसङ्ग में तो यह आवश्यक है कि हम सर्वप्रथम इन हुई और न केवल ब्रह्मा (देवता) अपितु बालक और बुद्ध भी इसी सूत्रों में 'प्रकृति' शब्द का वास्तविक तात्पर्य क्या है, इसे समझे। यदि भाषा में बोलते हैं - (See-The preface to the Childer's Pali हम यहाँ प्रकृति का अर्थ उद्भव का कारण मानते हैं, तो निश्चित ही Dictionary). इन सूत्रों का यह ‘फलित होता है कि मागधी या पैशाची का उद्भव इससे यही फलित होता है मूल बुद्धवचन मागधी में थे। पालि शौरसेनी से हुआ, किन्तु शौरसेनी को एकमात्र प्राचीन भाषा मानने उसी मागधी का संस्कारित साहित्यिक रूप है, जिसमें कालान्तर में वाले तथा मागधी और पैशाची को उससे उद्भूत मानने वाले ये विद्वान् बुद्धवचन लिखे गये। वस्तुत: पालि के रूप में मागधी का एक ऐसा वररुचि के उस सूत्र को भी उद्धृत क्यों नहीं करते, जिसमें शौरसेनी संस्करण तैयार किया गया, जिसे संस्कृत के विद्वान् और भिन्न-भिन्न की प्रकृति संस्कृत बताई गयी है यथा- "शौरसेनी-१२/१ टीका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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