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________________ १२. यतीन्द्र सूरि स्मारकग्रन्थ जैन आगम एवं साहित्य ऋतिभाषितनिर्युक्ति - चौरासी आगमों में ऋषिभाषित का भी नाम है। प्रत्येक बुद्ध द्वारा भाषित होने से यह ऋषिभाषित के नाम से विश्रुत है। इस पर भी भद्रबाहु ने नियुक्ति लिखी थीं पर वर्तमान में अनुपलब्ध हैं। १३. वही, गाथा ४५९ १४. वही, गाथा ५९४ १५. वही, गाथा ८८१ १६. वही, गाथा १०२३-१०३४ १७. १८. १९. २०. २९. २२ . २३. २४. २५. २६. २७. सूर्यज्ञप्तिनियुक्ति - यह भी वर्तमान में उपलब्ध नहीं है, परन्तु आचार्य मलयगिरि की वृत्ति में इसका नाम - निर्देश हुआ है। इसमें सूर्य की गति आदि ज्योतिषशास्त्र सम्बन्धी तथ्यों का सुन्दर निरूपण हुआ है। इनके अतिरिक्त पिण्डनिर्युक्ति, ओघनिर्युक्ति एवं पंचकल्पनिर्युक्ति स्वतन्त्र ग्रंथ न होकर क्रमश: दशवैकालिक, आवश्यक और बृहत्कल्पनिर्युक्ति की ही सम्पूरक हैं। इस प्रकार जैन परम्परा के महत्त्वपूर्ण एवं विशिष्ट पारिभाषिक शब्दों की स्पष्ट व्याख्या जो नियुक्तिसाहित्य में हुई है वह अपूर्व है। इन्हीं व्याख्याओं के आधार पर बाद में भाष्यकार, चूर्णिकार एवं वृत्तिकारों ने अपने अभीष्ट ग्रन्थों का सृजन किया है। नियुक्तियों की रचना करके भद्रबाहु ने जैनसाहित्य की जो विशिष्ट सेवा की है वह जैन आगमिक क्षेत्र में सवर्था अविस्मरणीय है। १. २. ३. ४. ५. 6. ७. सन्दर्भ-ग्रन्थ अनुयोगद्वार, पृ. १८ और आगे आवश्यक नियुक्ति, गाथा ८८ वही, गाथा ८३ निश्चयेन अर्थप्रतिपादिका युक्तिर्नियुक्ति : आचारांगनिर्युक्ति १/२/१ उत्तराध्ययन की भूमिका, पृ. ५०-५१ D. Ghatge, Indian Historical Quarterly, Vol. 12, P. 270 वंदामि भद्रबाहुं पाईणं चरिमसगलसुयनाणिं । सुत्तस्स कारमिसि दयासु कप्पे य ववहारे || दशाश्रुतस्कंधनिर्युक्ति, १ आवश्यक नियुक्ति गाथा ७९-८६ ८. ९. गणधरवाद प्रस्तावना, पृ. १५-१६ १०. आवश्यक निर्युक्ति, गाथा १७-१९ Jain Education International " ११. सामाइयमाइयाई एक्कारस्स अहिज्जइ । - अन्तः कृतदशांग प्रथमवर्ग । आवश्यक निर्युक्ति, गाथा ९४ - १०३ वही, गाथा १०३५ वही, गाथा १०५९ वही, गाथा १०६४ वही, गाथा १०६६-६८ वही, गाथा १०८७-८९ वही, गाथा ११०-११ वही, गाथा ११४५-४७ वही, गाथा १९६७-१२०० वही, गाथा १०२४ वही, गाथा १२२३ स्वस्थानात्यत्परस्थानं प्रमादस्य वशाद्गहः । तत्रैव क्रमणं भूयः प्रतिक्रमणमुच्यते । Gâ{ <3 pardon आवश्यक नियुक्ति, गाथा १२३६ २८. वही, गाथा १२३८ २९. वही, गाथा १२४४-४६ ३०. वही, गाथा १२६८ ३१. वही, गाथा १२६९ - १२७३ ३२. वही, गाथा १४४७ ३३. वही, गाथा १४५३ ३४. वही, गाथा १४५४-५५ ३५. वही, गाथा १४५८ ३६. वही, गाथा १५३६-३८ ३७. वही, गाथा १५३९-४० ३८. वही, गाथा १५४१-४२ ३९. वही, गाथा १५४५ ४०. वही, गाथा १५५० ४१. (क) दशवैकालिकनिर्युक्ति, हरिभद्रीयविवरणसहित : प्रकाशक- देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, बम्बई, १९१८ For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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