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________________ __ यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ - जैन आगम एवं साहित्य घबराए। महात्माजी के पैर पकड़ने लगे, क्षमा माँगने लगे। थोड़ी है। भजन करते हए भी नहीं बोलना चाहिए, क्योंकि बातें करने देर में पुन: वही आकाशवाणी हुई। महात्माजी ने आँखें खोलीं, से भजन में रस नहीं आता। विनम्र शब्दों में बोले, देव! तुम उलटना ही चाहते हो तो इन इन प्रत्येक शभ कार्य के प्रारंभ में मंगलाचरण किया जाता सबकी बुद्धि उलट दो। नाव उलटने से क्या होगा?' है। धर्मबिन्दु ग्रन्थ के भी प्रारंभ में ग्रन्थकार मंगलाचरण करते मनुष्य की कुबुद्धि ही पाप की ओर प्रेरित करती है। हैं, क्योंकि 'श्रेयांसि बहुविघ्नानि' अच्छे कार्य में बहुत विघ्न कुबुद्धिधारी को मिटाने से क्या होगा? कुबुद्धि को ही मिटा देना आते हैं। हम जब माला फेरते हैं, प्रवचन सुनते हैं, प्रतिक्रमण चाहिए। सद्बुद्धि पाने के लिए जिनवाणी ग्रन्थों को तथा सूत्रों को करते हैं तब नींद आ जाती है। धर्म करते हुए जीवों को ऐसे ही सुनना आवश्यक है। सुनते हुए पूरी सावधानी रखनी चाहिए। १३ प्रकार के विघ्न आते हैं। अच्छी वाणी सुननी चाहिए, एकाग्रतापूर्वक सुनना चाहिए और सेठ मफतलाल प्रवचन सन रहे थे। प्रवचन में द्रव्यगणपर्याय मौन होकर सुनना चाहिए। का विवेचन चल रहा था, इसलिए रस नहीं आ रहा था, नीरस इस संसार में अनेक बातें हैं, बातों की क्या कमी है ? यदि लग रहा था। सेठ को प्रवचन सुनते-सुनते झपकी आने लगी। व्यक्ति गप्पें लगाने बैठ जाये तो घड़ी थक जाएगी, किन्तु व्यक्ति गुरु महाराज ने देख लिया और पूछ बैठे "क्यों सेठजी! आप सो नहीं थकेगा। किन्तु अच्छी वाणी सुनने में किसकी रुचि होती है? रहे हैं?" सेठजी ने बात छिपाई और कहा, "नहीं ध्यान से सुन कानों द्वारा किसी के विचार सुनकर विवेक से सोचें। यदि वह रहा है। दूसरी बार फिर सोते देखा तो फिर टोका। सेठजी बोले, ठीक लगे तो मन में उतरने दें, अन्यथा सुना-अनसुना कर दें। "नहीं-नहीं, मैं सो नहीं रहा हूँ, कौन कहता है कि मैं सो रहा हूँ। सुनें सबकी, करें मन की। मैं तो समाधि लगाकर एकाग्रता से सुन रहा हूँ।" तीसरी बार भी एक बार सेठानी दिवालीबाई व्याख्यान सुनने गई थी। सेठजी को उसी हालत में देख कर गुरु महाराज ने भाषा बदलकर नित्य ही सुनने जाया करती थी। गुरु महाराज भगवती सत्र पर पूछा, “क्यों सेठजी! जीते हैं क्या?" सेठजी ने तुरंत नींद में ही व्याख्यान देते थे। भगवती सत्र में गोयमा शब्द बार-बार आता उत्तर दे दिया, “नहीं-नहीं।" इस बार पोल खुल गई। सेठजी की है। गुरु महाराज गंभीर होकर अनूठे ढंग से गोयमा शब्द बोलते क्या' क्या गति थी? नींद में सोते हैं या जीते हैं का कुछ अन्तर ही थे। दिवालीबाई सुनते-सुनते समाधि लगा लेती थी (सो जाती मालूम नही - मालूम नहीं पड़ा। सोचा कि सोते हैं क्या, यही पछा होगा, इसलिए थी)। एक ध्यान से सनने का बहाना बनाती। एक बार घर पर कह दिया- नहीं नहीं, जबकि पूछा था कि जीत है क्या? बहूजी ने पूछा-माताजी! गुरु महाराज का प्रवचन कैसा है? अच्छे कार्यों में इस प्रकार के अनेक विघ्न आ जाते हैं। आज गुरुजी ने क्या बताया? माँजी ने कहा-"गुरुजी व्याख्यान आप नियम बना लीजिए कि १२ माह तक निरंतर श्री गौड़ीजी .तो अच्छा देते हैं, परन्तु उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं लगता। की पूजा करूँगा, फिर देखिए कैसे-कैसे विघ्न आते हैं? प्रवचन के दौरान बार-बार ओय माँ, ओय माँ करते रहते हैं।" - मंगल दो प्रकार के होते हैं, द्रव्यमंगल और भावमंगल। दिवालीबाई ने कैसा अच्छा प्रवचन सुना? गोयमा से ओय मंगल का अर्थ होता है 'मं पापं गालयति इति मंगलम्' जो पाप मां हो गया। क्या आप भी ऐसी ही एकाग्रता से प्रवचन सुनते हैं? को गला दे, टाल दे वह मंगल है। 'धर्मबिन्दु' में भाव. मंगल एकाग्रता से सुनेंगे तो ध्यान में भी रहेगा। जो सुना हो उसे घर पर करते हुए कहा गया है किजाकर लिख लेना चाहिए भविष्य में बहुत काम आएगा। प्रणम्य परमात्मानं समुद्धृत्य श्रुतार्णवात्। प्रवचन मौन होकर सुनना चाहिए। मौन से सर्व कार्य . धर्मबिन्दुं प्रवक्ष्यामि, तोयबिन्दुमिवोदधेः॥ सिद्ध होते हैं। ज्ञान, ध्यान, भोजन और भजन मौनपर्वक करने . मंगल-विधान का उद्देश्य है- विघ्नों का नाश हो। आप चाहिए। भोजन करते हुए बोलने पर ज्ञानावरणीय कर्म का बंध छोटी-सी यात्रा करने जाते हैं या देशान्तर भी जाते हैं तो द्रव्यहोता है, जिससे मूकपन, गूंगापन, तुतलाहट और अज्ञान आता मंगल (शकुन, स्वर) सब कुछ देखते हैं न? प्रस्थान करते समय boardworbediudwardedwordabixbrdiadriib6drawbediroino-di-११dbndirdibadatorioniromotionaridwardroidroranibraridwar Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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