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________________ Jain Education International यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ परिशिष्ट गुरु राजेन्द्रसूरि, सद्गुणी भूरि, योगीश्वर उपकारी । खाचरौद दीक्षा, पाई शिक्षा, बृहत् आहोरधारी ।। वाचकपद भूषित, मनकलि विकसित, संघ जावरा भारी | यतीन्द्रसूरीश्वर, ज्ञानगुणागर, आबालब्रह्मचारी ।।८।। सकल संघ मिलकर आहोर नगर उत्सव किया विचारी । आचार्य दिया पद संघ हुआ मुद, जय-जय ध्वनी उच्चारी ।। सौधर्मगच्छपति, प्रसरो यशतति, जयवन्त रहो भारी । यतीन्द्रसूरीश्वर, ज्ञानगुणागर, आबालब्रह्मचारी । ९॥ गुरुवन्दना * आचार्यदेव श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराजशिष्य, उत्तमविजय वृजिनराशिनिराकरणक्षमं, प्रबुधवाचकवृन्दशिरोमणिम् । सकलशास्त्रविचारणदक्षिणं, नमत धीर - यतीन्द्रगुरुं परम् ॥ १॥ नमत सादरमेनमनारतं, श्रमणसद्गुणशोभिवपुः श्रियम् । जगति तत्त्वविदामतितोषदं गुरुयतीन्द्रमनीहमलोभिनम् ॥ २ ॥ करुणया परया जगदद्भुतं, सदसि निर्जितवादिमतिप्रभम् । परमपावनमानतशर्मदं, गुरुयतीन्द्रमहर्निशमानुमः ॥३॥ रतिपतिच्छविजित्त्वररूपिणं, शशिसमानसुशीतलकारिणम् । श्रमणसेवकसंसृतितारिणं नमत धीर-यतीन्द्रगुरुं प्रभुम् ॥४॥ प्रतिदिशोदितकीर्त्तिलताजुषं, सुजनवारिजराशिदिवाकरम् । कुमतनागमहाङ्क शमद्वयं, परिणुमो गुरुधीर - यतीन्द्रकम् ॥ ५ ॥ सदसि वागधिपोपममर्थिनां, नवपयोदमिवेष्टवसुप्रदम् । सकलविश्वजनीनपुरःसरं, परिणुमो गुरुधीर - यतीन्द्रकम् ॥६॥ श्रुतिसुखावहधर्मसुदेशनां, मधुरया गिरया ददतं सदा । सकलजीवदयारतमानसं, नमत धीर - यतीन्द्रगुरुं जनाः ॥७॥ अष्टकं कृतवानेतद्विजयान्तिक उत्तमः । उपाध्यायगुरोरस्य, कृपया सीमया मुदा ।।८।। Gan Gan{ २७ Jnanandn For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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