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________________ यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व - कृतित्व - भेदविज्ञान के ज्ञाता आचार्यश्री श्री सुशीलकुमार रमेशचन्द्रजी खटोड़, मनावर... आचार्य भगवत् श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. का वि.सं.२००९ का वर्षावास बागरा में था। इस वर्षावास-काल में आप के सदुपदेश से पुरानी धर्मशाला के जीर्णोद्धार का कार्य करवाया जाना था और श्री पार्श्वनाथ जिनालय की श्रृंगार चौकी के निर्माण का कार्य करवाना भी श्री संघ बागरा ने स्वीकृत कर लिया था। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य कार्य भी वहाँ पर सम्पन्न हुए। वर्षावास-कालीन धार्मिक कार्य बहुत ही शानदार ढंग से सम्पन्न हो रहे थे। श्रीसंघ में अपूर्व उत्साह भी था। एक दिन एकाएक आचार्य श्री को मूत्रावरोध का रोग हो गया था। यह रोग इसी वर्षावास में उत्पन्न हुआ हो,ऐसी बात नहीं थी। इसके पूर्व भी दो-तीन बार यह रोग आपको पीड़ित कर चुका था। उस समय तात्कालिक उपचार से रोग ठीक हो गया था। बागरा वर्षावास में जैसे ही यह रोग उत्पन्न हुआ और बागरा श्री संघ को जानाकरी मिली तो श्रावक संघ के प्रमुख श्रावक आप की सेवाएं तत्काल उपस्थित हुए सबकी मुखमुद्राओं पर चिंता की रेखाएँ खिंची हुई थी। सभी ने एक स्वर से इस रोग की समुचित चिकित्सा करवाने की विनती की। आचार्य देव ने श्रावक संघ के प्रमुख व्यक्तियों की विनती स्वीकार कर ली। बागरा में योग्य चिकित्सक न होने के कारण जालोर से तत्काल डाक्टर को बुलाया गया। डाक्टरने आप का परीक्षण कर शल्यक्रिया (आपरेशन) करने का परामर्श किया। उसनेने यह भी बताया कि बिना शल्यक्रिया के इसका उपचार संभव नहीं है। तात्कालिक लाभ कुंछ औषधियों से मिल सकता है, किन्तु स्थायी लाभ के लिए शल्यक्रिया आवश्यक है सबकी सहमति होने पर शल्य-क्रिया कराना निश्चित हो गया। शल्यक्रिया की कार्रवाई शुरू हुई। उन दिनों यदि छोटी शल्यक्रिया भी होती थी तो रोगी को क्लोरोफार्म सुँघा कर मूर्च्छित किया जाता था। उसके पश्चात् ही शल्यक्रिया की जाती थी। जब आचार्यश्री को मूछित करने के लिए क्लोरोफार्मसुंघाया जाने लगा तो आप ने कहा मुझे मूछित करने की आवश्यकता नहीं है। भगवन यदि मूञ्छित नहीं किया जायेगा तो आप को असह्य कष्ट होगा।' एक श्रावक ने कहा। महाराज श्री क्लोरोफार्म सुँघाने से आपको कोई कष्ट नहीं होगा। आपके मूर्छित होने से आपरेशन करने में सुविधा होगी। डाक्टर ने भी कहा। मेरी सुविधा कष्ट आदि की आप चिंता न करें। मैं जानता हूँ कि यह कष्ट शरीरका हे. आत्मा इससे अलग हे शारीरिक कष्ट की चिंता नहीं। आप निश्चिन्त होकर आपरेशन करें मेरी ओर से आपको कोई भी असुविधा नहीं होगी।' आचार्य श्री ने फरमाया। इतना होने पर भी प्रमुख श्रावकों और डाक्टरों ने आपसे पुनः क्लोरोफार्म सुंघवाकर मूछित कर शल्यक्रिया करने की विनती की, किन्तु आप अपने कथन पर दृढ़ रहे। अंततः आप को मूञ्छित किये बिना ही डाक्टर ने आपका आपरेशन कर दिया। जिस समय आपरेशन किया जा रहा था, अंगछेदन किया जा रहा था, उस समय आप एकदम शांत निश्चल सोये रहे। आपरेशन की अवधि में न तो आप के मुख से किसी प्रकार की ध्वनि निकली और न शरीर का कोई अंग ही हिला। आपरेशन सफलतापूर्वक सम्पन्न हो गया। तब आप ने फरमाया- इतनी सी बात के लिए मुझे मूर्छित किया जा रहा था। वहाँ उपस्थित सभी ने आप के साहस की मुक्तकंठ से प्रशंसा की। सभी यह जान गये कि आचार्य भगवन् भेदविज्ञान के केवल ज्ञाता ही नहीं है, उन्होंने उसे अपने जीवन में उतार भी लिया है। काफी दिनों तक उपचार चलता रहा। बागरा श्रीसंघ ने तन-मन-धन से प्रशंसनीय सेवा की। मूत्रावरोध रोग से फिर आप को पूर्णत: मुक्ति मिल गयी। इस प्रसंग से गुरुदेव का भेदविज्ञानी रूप हमारे सामने प्रकट हुआ जो अन्यत्र कम ही देखने को मिलता है। didndonotonotondinindiandiminidad ९६]worthasansar Guidandruddresulondriandindiindurikar Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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