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________________ - यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व - कृतित्व शाना (१) साधु-प्रतिक्रमण सूत्र (सार्थ-हिन्दी), (२) सत पुरुष के लक्षण, (३) स्त्री-शिक्षा-प्रदर्शन और (४) श्री तप परिमल। यिक वि.सं. २०१२ का वर्षावास राजगढ़ (धार), वि.सं. २०१३ कारवाचरोद एवं वि.सं. २०१४ का वर्षावास राणापुर में व्यतीत किया। इस अवधि में अनेक धार्मिक कार्यक्रमों के साथ अन्य समाजोपयोगी कार्य भी सम्पन्न हुए। गुरुदेवश्री राजेन्द्रसूरिजी का अद्ध शताब्दी महोत्सव भी मनाया गया। इसी समय आचार्य भगवन श्रीमद् विजय यतीन्द्र सूरीश्वर जी म. का दीक्षा हीरक जयंती वर्ष भी आ गया। तब आपकी सेवा में एक अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया गया। एक ज्ञान योगी आचार्य को इससे अच्छी भेंट और क्या हो सकती थी। इस अवसर पर आपने अपने संदेश में फरमाया कि यह उनका नहीं जिन शासन का सम्मान है। भघवान्, महावीर के शासन को दीपाना संतों का सच्चा सम्मान है। आचार्य भगवन् ने आजीवन जैन धर्म और ज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए अथक प्रयास किया। उनका मुखमण्डल ब्रह्मचर्य के तेज से दैदीप्यमान था। उनका ओजस्वी एवं तेजस्वी व्यक्तित्व सबके लिये आकर्षण का केन्द्र था। उनका अपना एक प्रभा मण्डल था जो उनकी उत्कृष्ट साधना का परिणाम था। उनकी एक अन्य विशेषता थी, विद्वानों का सम्मान करना। ऐसी विशेषता अन्यत्र कम ही देखने को मिलती है। आज आचार्य प्रवर हमारे बीच नहीं है किन्तु उनकी स्मृतियाँ हमारा मार्गदर्शन करती हैं। मोपचार Sharगांधी प र माशोमा डिमांगो कि जिजामात विगिंग कर कि काराम विवाहमाची किलानणाशी मानवी ही शिकार मागपत्रमाणको काशी రురురురురురురురువారం brora రవారందరు గురువారుతరసాని Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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