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-यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व-कृतित्व अब यह स्पष्ट हो ही जाता है कि जैन साधुओं को श्वेत वस्त्र धारण करने चाहिए अथवा पीत। जैन साधु एवं साध्वियों के द्वारा श्वेत वस्त्र धारण करना ही उनका सनातन शिष्टाचार है। अंतत: सूरिजी श्री सागरानन्द म.सा. ने भी आश्विन मास की अमावस्या को अपने प्रकाशित पत्र में जैन आगमों के प्रमाणों के अभाव में स्वीकार किया कि जैन साधुओं का श्वेत वस्त्र धारण करना ही शास्त्रीय-मर्यादा है।
ऐसे थे आचार्य श्री यतीन्द्र सूरिजी म.सा. जो अपनी निर्मल बुद्धि से सहज ही समस्याओं को हल कर देते थे। युक्ति युक्त वार्तालाप करना ही उनकी दैनंदिनी था। यह तो उनके जीवन में घटी मात्र एक छोटी-सी घटना है। इस प्रकार न जाने कितनी ही समस्याओं का उन्होंने बड़ी सहजता से पुष्टिकरण कर दिया था, परन्तु उन सबको शब्दों में नहीं पिरोया जा सकता। आखिर ...
साड "उनका यह विराट रूप शब्दों में कैसे समाएगा,
कितना ही कुछ लिख दूँ, मगर लिखने को शेष रह जाएगा। आधार:
१. श्री गुरुचरित २. पीतपटाग्रहमीमांसा ३. कुलिङ्गिवदनोद्गार - मीमांसा
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मEिEEना कालराकिणि नागर आता
एकामागाट गीको मार गिरगान किया गया वाकर विजिकिगाकार किया निशान या किसी गाणि शीकशी
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ਸਬਉਸਦਉ ਲਗਾ ਕੇ ਇਸ ਦੇ ਸਿਰ
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