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________________ यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्य : व्यक्तित्व-कृतित्व -- झगड़ा समाप्त होने के स्थान पर अब तो स्थिति यह हो गई थी कि इनका आपस में भोजनव्यवहार भी बंद हो गया था। इस प्रकार विवाहादि कार्यों में जाति में आपस में आना-जाना ही बंद हो गया। यहाँ की विषमता दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी। जब आचार्य भगवान् बागोड़ा पधारे, तो दोनों श्री संघों के मध्य के झगड़े का वृत्तांत गुरुदेव के समक्ष प्रस्तुत किया गया। इस पर आप ने श्री संघ के सदस्यों को एकत्र कर झगड़ा समाप्त करने के सम्बन्ध में समयोचित उपदेश दिया। हार्दिक प्रसन्नता का विषय रहा कि श्री संघ बागोड़ा ने अपनी सहमति प्रदान की कि जिस प्रकार भी गुरु भगवन् झगड़े का निपटारा करेंगे, वह उसे स्वीकार होगा। बागोड़ा से विहार कर आचार्य भगवंत राउता ग्राम पधारे। इस विहार यात्रा में बागोड़ा संघ भी आपश्री के साथ राउता तक रहा। राउता में मोरसिम के श्री संघ ने भी आपकी सेवा में उपस्थित होकर पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ वंदन किया और नगर-प्रवेश के समय भी पूर्ण श्रद्धा-भाव रखा और हर्षोल्लास के साथ प्रवेशोत्सव में साथ दिया। मोरसिम की भक्ति-भावना देखकर आचार्य भगवन को संतोष हुआ। आचार्य भगवन् का यहाँ दो दिन मुकाम रहा और दोनों श्री संघों का झगड़ा समाप्त कर एकता के लिए प्रयास किया गया। समझाइश, उपदेश और आपके प्रभाव के कारण अंततः दोनों श्री संघों में एकता स्थापित हो गई। झगड़ा समाप्त हो गया। जैसे ही एकता स्थापित हुई दोनों ही श्री संघों ने एक स्वर में जय-जयकार के निनादों से गगन मण्डल गुंजा दिया। चारों ओर हर्ष और आनन्द की लहर व्याप्त हो गई। तत्पश्चात् दोनों श्री संघों की ओर से अलग-अलग स्वामी-वात्सल्य हुए। इस प्रकार ७० वर्षों से चले आ रहे झगड़े का समापन कर आचार्य भगवन् राउता से विहार कर मोरसिम पधारे। यहाँ भी दो दिन विराजमान रहे। विहारक्रम में आप का साचोर पदार्पण हुआ। साचोर नगर के श्री संघ में भी कई वर्षों से कुछ विशेष कारणों से फूट पड़ी हुई थी। जिस समय आचार्य भगवन् का पदार्पण हुआ, तो श्री संघ के दोनों पक्षों ने धूमधाम से समारोहपूर्वक आपका नगर-प्रवेश करवाया। यहाँ की फूट की बात भी आप के सम्मुख आई और आपने एकता के लिए प्रयास किए। मध्यस्थता के लिए भीनमाल निवासी शाहदानमल पृथ्वीराजजी भण्डारी को रखा गया। ये सरकारी कर्मचारी थे। इन्होंने एकता के लिए आचार्य भगवन् के मार्गदर्शन में कठोर परिश्रम किया। आचार्य भगवन् का मार्गदर्शन, उपदेश और शा. दानमल पृथ्वीराजजी भण्डारी का कठोर परिश्रम उस समय सफल हुआ, जब दोनों पक्षों ने 'बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले' वाली कहावत स्वीकार कर एकता स्थापित कर ली। दोनों पक्ष एक हो गए। जय-जयकार के नारे गूंज उठे। दोनों पक्षों की ओर से दो स्वामी-वात्सल्य हुए और तीसरा स्वामी-वात्सल्य शाह दानमलजी पृथ्वीराजजी की ओर से हुआ। वि.सं. २००९ वैशाख कृष्णा १ को आप ने थराद से विहार किया। आप ग्रामानुग्राम धर्मप्रचार करते हुए निरंतर विहाररत् थे। इन दिनों आप का स्वास्थ्य भी अनुकूल नहीं रहता था और विहार भी लम्बा नहीं हो पाता था। मार्ग में जहाँ भी मुकाम होता, अवसरानुकूल उपदेश प्रदान करते। ग्राम नारोल और वासणा में आपके उपदेशों से प्रभावित होकर यहाँ के ठाकुरों ने मांस और मदिरा का आजीवन त्याग किया। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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