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________________ - यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व-कृतित्व - ७. श्री गौतमकुलक (हिन्दी अनुवाद) - यह वसंततिलका वृत्तों में प्राकृत भाषामय बीस गाथाओं का किसी प्राचीन आचार्य द्वारा रचित सभाषित-शिक्षा ग्रंथ है। उसी का यह मल. शब्दार्थ और भावार्थ है। इसकी प्रत्येक गाथा जैन और जैनेतर सभी के लिये कंठस्थ करने योग्य है। इसकी प्रत्येक गाथा में चार-चार शिक्षाएँ हैं, जिनके धारण करने से मनुष्य अपने जीवन में सुधार कर सकता है। यह ग्रंथ जीव-भेद निरूपण हिन्दी पुस्तक सहित छपा है। इसका गुजराती अनुवाद भी है। ८. पीतपटाग्रह-मीमांसा - अपने रतलाम वर्षावास के समय आप का शास्त्रार्थ चतुर्थस्तुतिक, पीत वस्त्राग्रही अपवादी आचार्य सागरानन्द सूरिजी से नौ माह तक हुआ था। आचार्य सागरानन्द सूरि पीत वस्त्र धारण करने के पक्षपाती थे। उन्होंने अपने भक्तों के माध्यम से काफी हो हल्ला भी मचाया था। शास्त्रार्थ में भी उन्होंने जोर लगाया, किन्तु वे अपने मनोरथ में इसलिए सफल नहीं हो के थे कि आप के अकाट्य तर्क और शास्त्रीय प्रमाणों के सामने उनके पास कोई उत्तर नहीं था। अंतत: उन्हें रातोंरात बिन किसी को सूचना दिए रतलाम से विहार करना पड़ा था। उस शास्त्रार्थ में पीत वस्त्र धारण करने का युक्तियुक्त और शास्त्र प्रमाणानुसार जो खंडन किया गया था, वही सब कुछ इस पुस्तक में है। यह पुस्तक आप की विद्वता का प्रतीक है। ९. निक्षेप-निबंध - इसमें निक्षेपों का स्वरूप सुन्दर ढंग से समझाया गया है। १०. अध्ययन-चतुष्टय - साध्वाचार-विषयक दशवैकालिक नामक सूत्र है। इसके रचनाकार श्रुतकेवली श्री शय्यम्भव सूरि हैं और पद जैनागमों में से एक है। अध्ययन चतुष्टय उसी के प्रारम्भिक चार अध्ययन हैं। इसमें प्रथम मूल बाद में उसका शब्दार्थ और भावार्थ सन्दर्भित है। अनुवाद इतना सरल और सरस है कि मर्म को समझने में तनिक भी संदिग्धता नहीं रहती। बड़ी दीक्षा के उत्साही साधु-साध्वियों यह पुस्तक कंठस्थ करने योग्य है। ११. लघुचाणक्य-नीति - अनुवाद - चाणक्यमंत्री-रचित वृहच्चाणक्यनीति से सार-सार सुभाषित श्लोक उद्धृत करके किसी यति ने आठ अध्याय वाला लघुचाणक्यनीति ग्रन्थ बनाया। आप ने इसी का सरल हिन्दी में अनुवाद किया है। इसका प्रत्येक श्लोक जैन और जैनेतर सभी के लिए उपयोगी और कंठस्थ करने योग्य है। १२. सत्यसमर्थक प्रश्नोत्तरी - इस पुस्तक में प्रश्नोत्तर हैं। कुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का समाधान सप्रमाण किया गया है। उदाहरणार्थ कुछ प्रश्न इस प्रकार हैं - चैत्य-वन्दन क्रिया कहाँ पर करनी चाहिए? मामिल कर मिला काय आप ने इस प्रश्न का सटीक तथा सप्रमाण उत्तर विस्तार से दिया है। IR E E 'चौथी बुई को नवीन है' ऐसा किस शास्त्र में लिखा है ? इस प्रश्न का उत्तर भी आप ने समुचित सन्दर्भ सहित दिया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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