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________________ यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व-कृतित्व - - जैनाचार्य श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरि पं. मदनलाल जोशी शास्त्री मंदसौर (म.प्र.)... त्याग, तपस्या, संयम एवं सदाचार की पावन परिधि में साधना करते हुए जिन महामनीषियों, ऋषियों एवं तपःपूत साधकों ने आध्यात्मिक चिन्तन तथा आत्मदर्शन के दार्शनिक स्रोत के आधार पर भारतीय दर्शन का साकार स्वरूप प्रस्तुत किया एवं सत्य का साक्षात्कार करने में सफलता प्राप्त की, उन्हीं महान् आत्माओं के फलस्वरूप उनकी आध्यात्मिक प्रतिभा के पुण्य प्रकाश में सम्पूर्ण संसार अपने जीवन को सही दिशा में प्रवृत्त करने हेतु मार्गदर्शन प्राप्त करता रहा है एवं मित्ती में सव्वभूएसु तथा आत्मवत्सर्वभूतेषु के आगमोक्त सनातन सिद्धांतों को आत्मसात करने को उद्यत रहता है। यही कारण है कि भौतिकवाद से सदासर्वदा दूर रहने वाला यह भारत अपनी आध्यात्मिक साधना के द्वारा जहाँ सम्पूर्ण विश्व का सफल एवं सार्थक नेतृत्व करता है वहीं अपने अलौकिक क्रियाशील आचरणों के माध्यम से आध्यात्मिक दर्शन के प्रभावोत्पादक स्वरूप को सही रूप में प्रगट करने की भी पूर्ण क्षमता रखता है। इसीलिए रत्नगर्भा वसुन्धरा के वैशिष्ट्य को सार्थक रूप में सिद्ध करने वाला भारत, वसुन्धरा के गौरवशाली एवं समुन्नत शिरोभाग के रूप में प्रभावोत्पादिनी अपनी प्राञ्जल प्रतिभा के द्वारा चमत्कृत एवं समलंकृत करने वाला वह मुकुटमणि है, जिसका अन्तदर्शनात्मक वर्चस्वशील आध्यत्मिक आलोक 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' के प्रात:कालीन प्रार्थना के स्वर की सार्थकता के अनुरूप, किसी चतुष्पथ (चौराहा) के मध्य स्थापित शाश्वत प्रकाश स्तम्भ के समान इतस्ततः निरुद्देश्य परिभ्रमण करते हुए मानव मात्र को अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाने के साथ ही वह दिव्य दृष्टि प्रदान करता है, जिससे विश्व का प्रत्येक प्राणी जीवन का निर्धारित लक्ष्य प्राप्तकर पारमार्थिक दृष्टि से अनुशासनबद्ध हो आत्मकल्याण के साथ प्रेय का परित्याग कर श्रेय की प्राप्ति कर सके। वस्तुत: यह इस अध्यात्म प्रधान भारत की ही एकमात्र विशेषता है कि यहाँ आरंभ से ही 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का उदात्त उद्घोष एवं उसकी सार्थकता का सुखद संदेश घर-घर गँजता रहता है, जिसने भी एक बार इस सुखद सत्य सन्देश को अपने जीवन का मूलतंत्र स्वीकार कर लिया, निस्संदेह वह सारहीन इस नश्वर संसार में रहते हुए भी सत्यता के समीप पहुँचे बिना नहीं रह सका। वर्तमान भौतिकवादी युग में भी भारत की इस अध्यात्मपरक विशेषता एवं सर्वेभवन्तु सुखिन: की सौहार्द-मयी सभावना को अक्षुण्ण बनाये रखने का सम्पूर्ण श्रेय उन तपःपून महामनीषियों, साधनारत संयमियों, तत्वज्ञ महात्माओं एवं परोपकरपरायण शास्त्रज्ञ आचार्यों, तथा सदाचरणशील सामाजिक अभ्युत्थान में समर्पित भाव से लगे कर्त्तव्यनिष्ठ उपदेष्टाओं को है, जिन्होंने परिव्राजक के रूप में यत्र-तत्र विचरण करते हुए अपने प्रभावशील सदुपदेशों, क्रियाशील आचरणों एवं सैद्धांतिक आदर्शों के नियमों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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