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________________ यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व - कृतित्व पाटोत्सव का कार्यक्रम वैशाख शुक्ला तृतीया से प्रारंभ हुआ और वैशाख शुक्ला दशमी सोमवार को हजारों गुरुभक्तों की उपस्थिति में व्याख्यानवाचस्पति उपाध्याय श्री यतीन्द्र विजयजी म. को श्रीसंघ ने सूरिपद से अलंकृत किया। इसी अवसर पर विद्वान् मुनिप्रवर भी गुलाब विजयजी म. को उपाध्याय पद से विभूषित किया। पद - अलंकरण के पश्चात् जय जयकार के निनादों से आहोर का गगन मंडल गूंज उठा। इस प्रकार यह पाटोत्सव हर्षोल्लासमय वातावरण में सानन्द निर्विघ्न सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर श्री संघ आहोर ने सेवा का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया। आगत अतिथियों के आवास एवं भोजन की उत्तम व्यवस्था की गयी थी। अब आप गच्छनायक आचार्य देव श्रीमद विजय यतीन्द्र सूरीश्वर म.सा. के रूप में विख्यात हो गये। मुनि से आचार्य पद तक पहुँचना आपकी साध्वाचार के प्रति निष्ठावान लगन के साथ ही विद्वत्ता एवं संगठनशक्ति को प्रकट करता है। आपकी इस सर्वतोमुखी प्रतिभा के कारण ही आप इस पद पर प्रतिष्ठित हुए। श्रीसंघ को आपके रूप में एक महान आचार्य एवं मार्गदर्शक मिल गया। Jain Education International 7월 HERPE peate HE EDITORS WER मा POISTE TE TUTE FT कुमार ४४ For Private & Personal Use Only साखर भावीत www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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