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________________ • यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व - कृतित्व ग्राम (झाबुआ स्टेट) और गुणदी (जावरा स्टेट) में स्वतंत्र रूप से प्रतिष्ठा कार्य सानन्द निर्विघ्न सम्पन्न करवाया था । तत्पश्चात् यह पुस्तक। इनसे आपकी योग्यता, प्रतिभा एवं दक्षता प्रकट हुई जिससे गुरुदेव काफी संतुष्ट थे। आपका विकास देखकर गुरुदेव प्रसन्न थे। अभिधानराजेन्द्रकोष विश्वविख्यात एवं कालजयी ग्रन्थरत्न है। गुरुदेव ने जितने कठोर परिश्रम से इसे लिखकर तैयार किया था, उससे भी कहीं अधिक परिश्रम, लगन और निष्ठा के साथ इसका संशोधन, सम्पादन कर आपने अपने गुरुभ्राता मुनिराज श्रीदीप विजयजी म. के सहयोग से उसका प्रकाशन करवाया। इस कार्य में आपको लगभग दस वर्ष का समय लगा और लगभग उतना ही समय इसकी बाइंडिंग में लगा। सं. १९८१ में यह ग्रंथरत्न पूर्ण रूप से तैयार हो गया। इसमें आपकी सम्पादन-कला स्पष्ट झलकती है। इस अवधि में आपने भी कुछ और पुस्तकों की रचना की। साथ ही दीक्षाएँ भी प्रदान कीं और उपधान भी सम्पन्न करवाये। इतना सब होते हुए भी आपके साध्वाचार में कोई शिथिलता नहीं आने पाई। इसके साथ ही आपका धर्मिक ग्रंथों का अध्ययन और लेखन भी नियमित रूप से चलता रहता था। प्रमाद को आपके जीवन में अवकाश नहीं था। वि.सं. १९९७ में आपका वर्षावास आचार्य श्रीमद् विजय धनचन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के सान्निध्य में बागरा में था, कारण था आचार्यश्री की अस्वस्थता। आपने आचार्य श्री की समर्पित भाव से सेवा सुश्रूषा की। किन्तु कहा गया है कि टूटी की बूटी नहीं है। कुशल वैद्यों और विख्यात डाक्टरों द्वारा चिकित्सा होने पर भी आचार्यश्री को बचाया नहीं जा सका और उनका वि.सं. १९७७ भाद्रपद शुक्ला प्रतिपदा को देवलोक गमन हो गया। उधर, कुक्षी में पौष शुक्ला चतुर्थी को उपाध्याय श्री मोहन विजयजी म. का स्वर्गवास हो गया। थोड़े से अन्तराल से आचार्य देव एवं उपाध्याय श्री के स्वर्गवास से आपको गहरा आघात लगा । इसे भी आपने सहन किया। निम्बाहेड़ा वर्षावास वि.सं. १९७९ में आपकी प्रेरणा से काफी महत्त्वपूर्ण कार्य हुए। कुछ विवरण इस प्रकार है १. श्री यतीन्द्र जैन युवक मण्डल की स्थापना । इस मण्डल का मुख्य उद्देश्य था जैन समाज का संगठन करना और समाज में प्रचलित कुरीतियों और घातक रूढ़ियों का अंत करना । २. श्री राजेन्द्र संगीत मण्डली की स्थापना। इसका उद्देश्य था जैन युवकों को पूजा-पूर्ति संगीत की शिक्षा प्रदान करना। ३. श्री यतीन्द्र जैन पाठशाला की स्थापना । ४. श्री यतीन्द्र सार्वजनिक पुस्तकालय और श्री राजेन्द्र ग्रन्थमाला की स्थापना । वि.सं. १९८०, वैशाख शुक्ला प्रतिपदा, द्वितीया एवं तृतीया को आपके सान्निध्य में मालवदेशीय राजेन्द्र महासभा का अधिवेशन सम्पन्न हुआ। यह अधिवेशन रतलाम में सम्पन्न हुआ था और इसमें निम्नांकित प्रस्ताव सर्वानुमति से पारित हुए थे। SMGAGONGO 8 pe Jain Education International For Private & Personal Use Only जिल www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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