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________________ -यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ -आधुनिक सन्दर्भ में जैन धर्म बेचरदासजी के शब्दों में निम्नलिखित हैं गुजरात और उसके सीमावर्ती प्रदेश में एक विशेष वातावरण निर्मित कर "हेमचन्द्र कहते हैं कि प्रजा में यदि व्यापक देश-प्रेम और दिया। उस समय के गुजरात की स्थिति का कुछ चित्रण हमें हेमचन्द्र शूरवीरता हो किन्तु यदि धार्मिक उदारता न हो तो देश की जनता खतरे के महावीरचरित में मिलता है। उसमें कहा गया है कि “राजा के हिंसा में ही होगी, यह निश्चित ही समझना चाहिये। धार्मिक उदारता के अभाव और शिकारनिषेध का प्रभाव यहाँ तक हुआ कि असंस्कारी कुलों में जन्म में प्रेम संकुचित हो जाता है और शूरवीरता एक उन्मत्तता का रूप ले लेने वाले व्यक्तियों ने भी खटमल और जूं जैसे सूक्ष्म जीवों की हिंसा लेती है। ऐसे उन्मत्त लोग खून की नदियों को बहाने में भी नहीं चूकते बन्द कर दी। शिकार बन्द हो जाने से जीव-जन्तु जंगलों में उसी निर्भयता और देश उजाड़ हो जाता है। सोमनाथ के पवित्र देवालय का नष्ट होना से घूमने लगे, जैसे गौशाला में गायें। राज्य में मदिरापान इस प्रकार बन्द इसका ज्वलन्त प्रमाण है। दक्षिण में धर्म के नाम पर जो संघर्ष हुआ उनमें हो गया कि कुम्भारों को मद्यभाण्ड बनाना भी बन्द करना पड़ा। मद्यपान हजारों लोगों की जानें गयीं। यह हवा अब गुजरात की ओर बहने लगी के कारण जो लोग अत्यन्त दरिद्र हो गए थे, वे इसका त्याग कर फिर है किन्तु हमें विचारना चाहिये कि यदि गुजरात में इस धर्मान्धता का प्रवेश से धनी हो गए। सम्पूर्ण राज्य में द्यूतक्रीड़ा का नामोनिशान ही समाप्त हो गया तो हमारी जनता और राज्य को विनष्ट होने में कोई समय नहीं हो गया।"१° इस प्रकार हेमचन्द्र ने अपने प्रभाव का उपयोग कर गुजरात लगेगा। आगे वे पुनः कहते हैं कि जिस प्रकार गुजरात के महाराज्य के में व्यसनमुक्त संस्कारी जीवन की जो क्रान्ति की थी, उसके तत्त्व आज विभिन्न देश अपनी विभिन्न भाषाओं, वेशभूषाओं और व्यवसायों को करते तक गुजरात के जनजीवन में किसी सीमा तक सुरक्षित हैं। वस्तुत: यह हुए सभी महाराजा सिद्धराज की आज्ञा के वशीभूत होकर कार्य करते हैं, हेमचन्द्र के व्यक्तित्व की महानता ही थी जिसके परिणामस्वरूप एक उसी प्रकार चाहे हमारे धार्मिक क्रियाकलाप भिन्न हों फिर भी उनमें विवेक- सम्पूर्ण राज्य में संस्कार क्रान्ति हो सकी। दृष्टि रखकर सभी को एक परमात्मा की आज्ञा के अनुकूल रहना चाहिये। इसी में देश और प्रजा का कल्याण है। यदि हम सहिष्णुवृत्ति से न रहकर, स्त्रियों और विधवाओं के संरक्षक हेमचन्द्र धर्म के नाम पर यह विवाद करेंगे कि यह धर्म झूठा है और यह धर्म यद्यपि हेमचन्द्र ने अपने 'योगशास्त्र' में पूर्ववर्ती जैनाचार्यों के सच्चा है, यह धर्म नया है यह धर्म पुराना है, तो हम सबका ही नाश समान ही ब्रह्मचर्य के साधक को अपनी साधना में स्थिर रखने के लिये होगा। आज हम जिस धर्म का आचरण कर रहे हैं, वह कोई शुद्ध धर्म नारी-निन्दा की है। वे कहते हैं कि स्त्रियों में स्वभाव से ही चंचलता, न होकर शुद्ध धर्म को प्राप्त करने के लिये योग्यताभेद के आधार पर निर्दयता और कुशीलता के दोष होते हैं। एक बार समुद्र की थाह पायी बनाए गए भिन्न-भिन्न साम्प्रदायिक बंधारण मात्र हैं। हमें यह ध्यान रहे जा सकती है किन्तु स्वभाव से कुटिल, दुश्चरित्र कामिनियों के स्वभाव कि शस्त्रों के आधार पर लड़ा गया युद्ध तो कभी समाप्त हो जाता है, की थाह पाना कठिन है।११ किन्तु इसके आधार पर यह मान लेना कि परन्तु शास्त्रों के आधार पर होने वाले संघर्ष कभी समाप्त नही होते, अत: हेमचन्द्र स्त्री-जाति के मात्र आलोचक थे; गलत होगा। हेमचन्द्र ने नारी धर्म के नाम पर अहिंसा आदि पाँच व्रतों का पालन हो, सन्तों का समागम जाति की प्रतिष्ठा और कल्याण के लिये जो महत्त्वपूर्ण कार्य किया उसके हो, ब्राह्मण, श्रमण और माता-पिता की सेवा हो, यदि जीवन में हम कारण वे युगों तक याद किये जायेंगे। उन्होंने कुमारपाल को उपदेश देकर इतना ही पा सकें तो हमारी बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।" विधवा और निस्सन्तान स्त्रितयों की सम्पत्ति को राज्यसात किये जाने की हेमचन्द्र की चर्चा में धार्मिक उदारता और अनुदारता के स्वरूप क्रूर-प्रथा को सम्पूर्ण राज्य में सदैव के लिये बन्द करवाया और इस माध्यम और उनके परिणामों का जो महत्त्वपूर्ण उल्लेख है वह आज भी उतना से न केवल नारी-जाति को सम्पत्ति का अधिकार दिलवाया,१२ अपितु ही प्रासंगिक है जितना कि कभी हेमचन्द्र के समय में रहा होगा। उनकी सामाजिक जीवन में प्रतिष्ठा भी की और अनेकानेक विधवाओं को संकटमय जीवन से उबार दिया। अत: हम कह सकते हैं कि हेमचन्द्र हेमचन्द्र और गुजरात की सदाचार-क्रान्ति ने नारी को उसकी खोई हुई प्रतिष्ठा प्रदान की। हेमचन्द्र ने सिद्धराज और कुमारपाल को अपने प्रभाव में लेकर गुजरात में जो महान् सदाचार क्रान्ति की, वह उनके जीवन की एक प्रजारक्षक हेमचन्द्र महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है और जिससे आज तक भी गुजरात का जनजीवन हेमचन्द्र की दृष्टि में राजा का सबसे महत्त्वपूर्ण कर्तव्य अपनी प्रभावित है। हेमचन्द्र ने अपने प्रभाव का उपयोग जनसाधारण को अहिंसा प्रजा के सुख-दुःख का ध्यान रखना है। हेमचन्द्र राजगुरु होकर और सदाचार की ओर प्रेरित करने के लिए किया। कुमारपाल को प्रभावित जनसाधारण के निकट सम्पर्क में थे। एक समय वे अपने किसी अति कर उन्होंने इस बात का विशेष प्रयत्न किया कि जनसाधारण में से निर्धन भक्त के यहाँ भिक्षार्थ गए और वहाँ से सूखी रोटी और मोटा खुरदुरा हिंसकवृत्ति और कुसंस्कार समाप्त हों। उन्होंने शिकार और पशु-बलि के कपड़ा भिक्षा में प्राप्त किया। वही मोटी रोटी खाकर और मोटा वस्त्र धारण निषेध के साथ-साथ मद्यपान-निषेध, द्यूतक्रीड़ा-निषेध के आदेश भी राजा कर वे राजदरबार में पहुंचे। कुमारपाल ने जब उन्हें अन्यमनस्क, मोटा से पारित कराये। आचार्य ने न केवल इस सम्बन्ध में राज्यादेश निकलवाए, कपड़ा पहने दरबार में देखा, तो जिज्ञासा प्रकट की, कि मुझसे क्या कोई अपितु जन-जन को राज्यादेशों के पालन हेतु प्रेरित भी किया और सम्पूर्ण गलती हो गई है? आचार्य हेमचन्द्र ने कहा-“हम तो मुनि हैं, हमारे लिये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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