SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1021
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - आधुनिक सन्दर्भ में जैनधर्म नारी का आभूषण कहा गया है, किन्तु वेश्या का इस आभूषण __पापद्वधो तनुमद्वधोज्झितघृण। पुत्रेऽपि दुष्टाशयः। से कोई संबंध नहीं है, वह निर्लज्ज है। वेश्या के संबंध में इसका तात्पर्य यह है कि जिस भी व्यक्ति को शिकार का कथासरित्सागर में ठीक ही कहा गया है कि वेश्याओं से स्नेह व्यसन लग जाता है कि वह मानव प्राणीवध करने में दया को की इच्छा करना बालू से तेल निकालने के समान है। तिजांजलि देकर हृदय को कठोर बना देता है। वह अपने पुत्र के कः प्राज्ञो वांछितस्नेहं वेश्याषु सिकतासु च। प्रति भी दया नहीं रख पाता। वेश्या कामांध व्यक्तियों को अपने जाल में फंसाती है। आचार्य वसुनन्दी ने कहा हैकामांध व्यक्ति के संबंध में कहा गया है कि कौए को रात में महमज्जससेवी पावड पावं चिरेण जं घोरं।। दिखायी नहीं देता। चमगादड़ को दिन में दिखायी नहीं देता, तं एयदिणे पुरिसो लहेइ पारद्धिरमणेण।. श्रावकाचार।। किन्तु कामांध को न दिन में दिखायी देता है ओर न रात में। ऐसे कामांध व्यक्ति वेश्या के चंगुल में फँसकर अपना सर्वस्व नष्ट कहने का तात्पर्य यह है कि मधु मद्य मांस का दीर्घकाल तक सेवन करने वाला जितने महान पाप का संचय करता है, कर देते हैं। इतना ही नहीं वेश्याएँ अनेक प्रकार की गुप्त व्याधियों से भी ग्रसित रहती है, जिसके कारण जो भी व्यक्ति उतने सभी पापों को शिकारी एक दिन में शिकार खेलकर संचित उनके संपर्क में आता है, वह भी इन व्याधियों का शिकार हो कर लेता है। इस कथन से सहज ही अनुमान लगाया जा सकता जाता है और फिर जीवन पर्यन्त दुःख भोगता रहता है, वेश्या तो है कि शिकार कितना भयंकर व्यसन है। यहां एक बात और शरीर की सौदागर होती है। वह धन के बदले अपना तन बेचती सहज ही कही जा सकती है कि जो व्यक्ति अन्य प्राणियों के है। इसलिए वेश्यागमन को दुर्व्यसन माना गया है। फिर आजकल प्राणों का हरण करता है उसके जीवन में आनंद का कोई स्थान एड्स नामक एक नया रोग भी उत्पन्न हो गया है। यह रोग नहीं है। अर्थात् उसे आनंद उपलब्ध नहीं होता है। इसके साथ ही एक अन्य बात यह भी है कि शिकारी शिकार करने के लिए यौनाचार के कारण होता है, इसका अभी तक कोई उपचार नहीं निकला है, इसलिए इस घातक रोग से बचने के लिए भी वेश्या । अनेक कठिनाइयों में फँस जाता है। उसे वन-वन भटकना पड़ता का परित्याग कर देना चाहिये। इस व्यसन से सदैव ही बचने का। है, कई बार मार्ग भूल कर घंटों भूखा-प्यासा वन में इधर से उधर प्रयास करना चाहिये। भटकता रहता है, और कभी कभी जिनका का वह शिकार करने के लिए जाता है, स्वयं उनका शिकार भी बन जाता है। (५) शिकार- शिकार अर्थात् आखेट । अपने मनोरंजन अथवा अन्य हिंसक जीवन उसे अपना लक्ष्य बना लेते हैं। वनों प्रयोजन के लिए किसी प्राणी का आखेट करना, शिकार करना में शिकार के लिए भटकते हए अनेक प्रकार के कष्ट भी सहन शिकार है। यह मनुष्य के जंगलीपन का प्रतीक है। जैन ग्रंथों में करने पडते है। इसे पापर्द्धि के कहा गया है कि जिसका तात्पर्य है पाप के द्वारा शिकार करना किसी भी स्थिति में न्याय संगत नहीं है। प्राप्त वृद्धि। इस वर्तमान भौतिकवादी युग में अंग श्रृंगार, फैशन, विलासिता शिकार करना वीरता का नहीं कायरता का प्रतीक है, के लिए निरीह पशु पक्षियों का वध करना कदापि उचित नहीं क्रूरता का द्योतंक है। शिकार में शिकारी अपने आपको छिपाकर । कहा जा सकता। उस समस्त सामग्री पर प्रतिबंध लगना चाहिये, पशु पर अपने अस्त्र-शस्त्र का प्रहार कर उसे मारता है। इस इस जिसमें निरीह प्राणियों के प्राणों का हरण किया जाता है। शिकार । प्रकार छिपकर प्रहार करना कायरता की निशाना है। यदि पशु १ पशु के पापाचार से बचना चाहिये।. पाप से बचकर अपने आपका पलटकर शिकारी पर आक्रमण कर दे तो शिकारी को प्राणों का जीवन सुखमय बनाने का प्रयास करना चाहिये। संकट उत्पन्न हो जाता है। शिकारी के पास धर्म नाम की कोई चीज नहीं होती। वह तो पाप से अपनी आय प्राप्त करता है। (६) चोरी- किसी वस्तु अथवा धन को उसके स्वामी से शिकारी के संबंध में कर्पूर प्रकरण में कहा गया है पूछे बिना ले लेना चोरी हैं। यों यदि सक्ष्म परिभाषा की जाये तो __कई बातों का उदाहरण के लिए यदि हम अपना कार्य नहीं करते రసారసాగరరరరరరmodi aa ro o ms DIGYANMAMAKHAND8.PM5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy