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________________ यतीन्दगरिमारक गत आवृनिक गन्दर्भ - वाले जीव त्रसकाय कहे जाते हैं। इन जीवों की उत्पत्ति प्रकृति ३. अचौर्य व्रत - से स्वतः होती है और ये सभी जीव फसल का संतुलन बनाए अपहरण करना चोरी है। वर्तमान में अपहरण के नए-नए रखने में सहायक होते हैं। केंचुआ जीव भूमि की उर्वरा-शक्ति रूप निकल आए हैं। व्यापार द्वारा उपभोक्ताओं के धन का बढ़ाते हैं। आज दवाइयों से इन जीवों को मार दिया जाता है, अपहरण तो किया ही जाता है। कल कारखानों में श्रमिकों को जिससे पैदावार में असंतुलन हो गया है तथा जीवों की अनेक श्रम का पूरा प्रतिफल न देकर उनके श्रम का भी अपहरण किया प्रजातियाँ लुप्त हो गई हैं। जाता है। उनकी विवशता का लाभ उठाया जाता है। जीवन - जैन-धर्म में उपर्युक्त सब प्रकार के जीवों का प्राणातिपात रक्षक दवाइयों के बीस, तीस गुने दाम लेकर धन का अपहरण करने रूपी प्रदुषणों के त्याग का विधान किया गया है। यदि इस किया जाता है तथा नकली दवाइयाँ बनाकर रोगियों को मृत्यु व्रत का पालन किया जाए और पृथ्वी, जलवायु, वनस्पति आदि के मुख में धकेला जा रहा है। लाटरी के द्वारा गरीबों के कठिन को प्रदूषित न किया जाए, इनका हनन न किया जाए तो मानव श्रम से की गई कमाई का अपहरण किया जा रहा है। संक्षेप में जाति प्राकृतिक प्रदूषणों से सहज ही बच सकती है। फिर कहें तो जितने भी शोषण के तरीके हैं वे सभी अपहरण के रूप सरकार को पर्यावरण के लिए किसी भी कानून को बनाने की हैं। बिना प्रतिफल दिए या कम प्रतिफल देकर अधिक लाभ आवश्यकता ही नहीं रहेगी। इस प्रकार से अहिंसा के पालन से उठाना शोषण या अपहरण है। यह अति भयंकर आर्थिक प्रदूषण प्राणातिपात के त्याग में पर्यावरण संबंधी समस्त समस्याओं है। इसी से आर्थिक विषमता उत्पन्न होती है। इससे गरीब अधिक का समाधान निहित है। गरीब और धनवान अधिक धनवान होते जा रहे हैं। इस विषमता से ही आज आर्थिक जगत् में भयंकर प्रतिद्वन्द्व व संघर्ष चल रहा २. मृषावाद विरमण - है। युद्ध का भी प्रमुख कारण यह आर्थिक शोषण व प्रतिद्वन्द्वता दूसरा व्रत है मिथ्याभाषण का, झूठ का त्याग करना अर्थात् की होड ही है। जैनधर्म में अपहरण व शोषण का त्याग प्रत्येक जो वस्तु जिस गुण-धर्मवाली है उसे वैसी ही बताया जाए। आज मानव के लिए आवश्यक बताया गया है। यदि इस अचौर्य व्रत चारों ओर व्यापार में मृषावाद का ही बोलबाला है। उदाहरण के का पालन किया जाए तो भुखमरी, गरीबी, आर्थिक, लूट, अकाल लिए रासायनिक खाद दीर्घकाल की उपज की तथा स्वास्थ्य को मत्य यद आदि प्रदषणोंओं का अंत हो जाए। दृष्टि से हानिकारक है, खेतों की उर्वरा-शक्ति को नष्ट करने वाला है। उसकी इन बुराइयों को छिपाकर उसे खेती के लिए ४. व्यभिचार का त्याग - लाभप्रद बताया जाता है। इसी प्रकार सिन्थेटिक धागे के वस्त्र इस व्रत में अपनी पत्नी के अतिरिक्त अन्य समस्त प्रकार स्वास्थ्य के लिए अति हानिकारक हैं, उनकी इस यथार्थता को के यौन-संबंधों को त्याज्य कहा गया है। जैनदर्शन में परस्त्रीगमन, छिपाया जाता है और उनके लाभ के गुण गाए जाते हैं। वेश्यागमन तथा अतिभोग को सर्वथा त्याज्य कहा गया है। यदि एण्टीबायोटिक दवाइयों से शरीर की प्रतिरक्षात्मक शक्ति का इसका पालन किया जाए तो एडस जैसी असाध्य बीमारियों से भयंकर ह्रास होता है जिससे वृद्धावस्था में रोगों से प्रतिरोध करने सहज ही बचा जा सकता है। आज जो एड्स तथा यौन-संबंधी की शक्ति ही नहीं रहती है। इस तथ्य को छिपाया जाता है और अनेक रोग व प्रदषण बडी तेजी से फैल रहे हैं, जिससे मानव धड़ल्ले से विज्ञापन द्वारा इनके लाभप्रद होने का प्रचार-प्रसार जाति को खतरा उत्पन्न हो गया है, इसका कारण इस व्रत का किया जाता है। आज विज्ञापनदाता विज्ञापित वस्तु से होने पालन न करना ही है। कामोत्तेजक तथा अश्लील चलचित्र वाली भयंकर हानि को छिपाकर उसके तात्कालिक लाभ को बनाना व उन्हें देखना इस व्रत को भंग करना ही है। इससे आज बहुत बढ़ा-चढ़ाकर जनता को मायाजाल में फँसाता है जो धोखा अविवाहित लड़कियों के गर्भ रहने, गर्भपात कराने तथा तलाक है। जैनसाधना में ऐसे कार्य को मृषावाद कहा गया है और । आदि घटनाओं में वृद्धि हो रही है। ब्यूटी पार्लर व प्रसाधन इसका निषेध किया गया है। जैन-दर्शन के इस सिद्धांत को सामग्री से शारीरिक अस्वस्थता बढ़ती जा रही है। इन भयंकर अपना लिया जाए तो ऐसे प्रदूषणों से बचा जा सकता है। प्रदषणों से बचाव इस व्रत के पालन करने से ही संभव है। సూరురురురరరరరరరరరంలో ఆరుగురు దురదromotions Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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