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चतुर्थखण्ड / २०६ की उपमा देते हुए फरमाया है कि महान् मोक्ष की एषणा करने वाले महर्षि संसार - समुद्र को तर जाते हैं ।
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अतः भव्य प्रात्माओं को ग्रागम प्रमाण और गुरुगम से स्वानुभूतिपूर्वक प्रात्मविज्ञान को यथार्थतः समझ कर उस पर सम्यक् श्रद्धा लाकर संसार समुद्र से तिरने की कला - भेदविज्ञान को प्राप्त कर तदनुरूप पुरुषार्थ से मोक्ष की प्राप्ति करना चाहिए। यही अभीष्ट है।
६. उत्तरा. प्र. २३ गा. ४३
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टोंक
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