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________________ उसकी उष्मा का और हिमालय के निकट पहुँचकर उसकी शीतलता का अनुभव किये बिना रह सकता है कोई ? अनेक साधक उनसे मार्गदर्शन लेने आते हैं, अनेक अपनी अनुभूतियाँ जताते हैं, उलझनों का समाधान लेते हैं, साधना की सहज विधि का अभ्यास भी करते हैं, किन्तु सब कुछ बहुत सहज ! बहुत ही स्वाभाविक । वर्तमान जैन समाज में, साधु वर्ग में भी ऐसे साधक बहुत कम मिलेंगे, पर साध्वी वर्ग में तो कोई दूसरी साधिका श्रमणी अभी तक मैंने नहीं देखी जिसमें ज्ञान एवं साधना का, श्रत एवं समाधि का इतना सूक्ष्म, गहन और समाजित संगम हया है। ऐसी विरल साधिका का युग युग तक वरद हस्त मिलता रहे यही मंगल भावना । भगवतीस्वरूपा 'अर्चना' जी - गोविन्द प्रसाद कुकरेती, उज्जैन श्रद्धेय महासती उमरावकंवरजी म. सा. का चातुर्मास गतवर्ष उज्जैन में था और इस समय मुझे उनके दर्शनलाभ का शुभ अवसर प्राप्त हुआ था। मेरी साधना से मुझे ऐसे संकेत मिले कि महासतीजी भगवती के स्वरूप हैं और मुझे मेरी साधना में शक्ति एवं पाशीर्वाद सदैव दे रही है । गत वर्ष मेरी नवरात्रि की कठिन साधना में मैंने इन्हीं माँ का आशीर्वाद लेकर साधना प्रारंभ की थी और साधना के अंतिम दिन मैंने इनका ही आशीर्वाद प्राप्त कर अपनी साधना पूर्ण की थी। यह महासतीजी मेरी साधना में मां भगवती की तरह मेरे साथ रहकर मुझे प्रेरणा एवं आशीर्वाद देती रहती हैं। इनकी साधना से मैं बहुत ही प्रभावित हुअा हूँ और मुझे बार-बार मेरे ध्यान में इनके संकेत आज भी प्राप्त होते रहते हैं। महासतीजी स्वयं में महान साधिका एवं उच्चकोटि की अध्यात्मयोगिनी हैं। विविध साधक इनकी अध्यात्म साधना के बारे में अलग-अलग प्रकार के जो अनुभव एवं मान्याताएँ सुनाते हैं उन सब के बारे में मैं अपने ध्यान योग के आधार पर यह कहने की स्थिति में हैं कि वे सब बातें पूर्णरूपेण सत्य हैं । महासतीजी की साधना हिमालय की तरह उच्च एवं गंगा की तरह पवित्र व करुणामय है और उनसे मैं स्वयं ही उपकृत हुया हूँ। महासतीजी की ५० वर्ष की घोर तपस्या अध्ययन एवं भ्रमण सम्पूर्ण मानवजाति के लिए एक धरोहर है। आप द्वारा लिखे गये ग्रन्थ सचमुच में स्वयं की साधना के विभिन्न रंगों एवं सुगन्धों के पुष्प हैं। इनका सादा जीवन एवं उच्च विचार तथा सतत साधना न सिर्फ गहस्थों के लिए बल्कि योगियों व साधकों के लिए भी अनुकरणीय है । जैन साधुसंतों की दिनचर्या एवं प्राचार-विचार ने मुझे बहुत ही प्रभावित किया है और अब मेरी यह मान्यता दृढ हो गयी है कि अध्यात्मसाधना इस प्रकार के जीवन व्यतीत करने वाले महापुरुषों की ही सफल हो सकती है। यह कांटों भरा रास्ता हर किसी के लिए सुगम्य नहीं है । आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की प्रथम खण्ड / २९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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