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________________ म-न-वचन-काया इन तीनों को योगियों ने योग बताया। साधना सिद्धि के लिये इन तीनों योगों पर ज्ञानियों ने जोर दिया और कहा मन, वचन और काया को जीतना बड़ा कठिन कार्य है, टेढ़ी खीर है। जिन-जिन योगियों ने, महापुरुषों ने तीनों पर काबू पा लिया उन सबकी मिसाल समाज में मौजूद है। रा–हें अनेकों हैं। जिन राहों में जीवन का कल्याण है, उन राहों पर ही चलना चाहिए। मंजिल तक पहुंचने के लिये निरन्तर चलना होगा। अपने कदम आगे बढ़ाने होंगे। प्रबुद्ध विचारकों का कहना है कि ठहरे हुए पांव कभी भी अपने उद्देश्य तक जा नहीं पाते । व-न कहते हैं जंगल को। यह संसार भी एक भयंकर जंगल है। इस संसार के जंगल में अनादिकाल से हमारी प्रात्मा यत्र-तत्र-सर्वत्र घूम रही है। अब सभी को इस जंगल रूपी चक्रव्यूह से बचना है। सही सलामत बाहर निकलना है। पूरी सावधानी की जरूरत है। हमारी प्रात्मा अनन्त शक्तियों का खजाना है, भण्डार है, स्रोत है। १८ प्रकार के दुश्मन पीछे लगे हैं। ऐसे मनमोहक खजाने को लूटना चाहते हैं। यह विवेक खो दिया तो माल चला जायेगा । पश्चात्ताप के अलावा पास में हमारे कुछ नहीं रह पायेगा। चिन्तन, मनन के साथ सोचें कि इस भयवाली नागिन से कैसे बच पायें। क-दन की चमक जगत में विख्यात है। कुन्दन कहते हैं सोने को। सोने की अग्नि में परीक्षा होती है, अग्नि के ताप से सोने में निखार आता है, असली सोना कभी भी काला नहीं पड़ता। नीति में समय को भी सोना कहा गया है। वैसे सोना सोना नहीं । हर पल सचेत-सावधान रहना । यह समय कीमती है। व-रदान व अभिशाप दो शब्द संसार में चलते हैं। महान व्यक्तियों का संसर्ग हमेशा वरदान स्वरूप सिद्ध होता है । वरदान को पाने के लिये संत पुरुषों की संगत करना होगी। पारस की संगत से लोहा भी सोना बन जाता है। संत पारस के बराबर हैं। इनका संसर्ग किया तो हमारी प्रात्मा भी सोने के मानिन्द बन जायेगी। र-ग-रग में अपने मजहब के प्रति यकीन, श्रद्धा, विश्वास होना चाहिये । धर्म प्रात्मा का लक्षण है। धर्म से ही प्रात्मा का उत्थान है। अण-प्रण में धर्म के लिये अर्पण के भाव होने चाहिये । जो इन्सान सच्चे दिल से समर्पित है, उसको देवता भी नमस्कार करते हैं। तो हम ऐसी योग्यता हासिल करें कि पूर्ण रूप से धर्म के प्रति अर्पित हों, प्रास्था व विश्वास के साथ धर्म अपनायेंगे तो निश्चित हमारा कल्याण धर्म करेगा। जी-रहे हैं पर अभी तक जीने की कला नहीं पाई। संसार में अच्छे इंसान बनकर जीना, यह सबसे बड़ी एक कला है। सारे विश्व में अच्छे इंसानों की कद्र है । वर्तमान समय में इन्सान तो बहत हैं, पर इंसानियत वाले इंसान कम दिखाई देंगे। पुरानी कहावत चल रही है कि मनुष्य-मनुष्य में अन्तर, कोई हीरा कोई पत्थर.... आई घड़ी वही मानव प्रादर पाता है, जिसके पास इन्सानियत है। इंसान की कोई कीमत नहीं । कीमत होगी इंसानियत के नाते । चरण कमल के वंदन की अर्चनार्चन | १४ Jan Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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