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________________ सत्साहित्य का अनुशीलन "बस गुरुदेव ! अब मुझे कोई भय या चिन्ता नहीं है। अगर उन मंत्र-दीक्षित सभी को सद्गति मिलेगी तो मैं सहर्ष दुर्गति सहन कर लूंगा । अब मुझे लेशमात्र भी चिन्ता अपनी दुर्गति की नहीं है।" अपने प्रिय शिष्य रामानुज की बात सुनकर उनके गुरु आश्चर्य के कारण स्तब्ध रह गये। इसे ही सच्ची मानवता और महानता कहते हैं। जो उत्तम पुस्तकें मानव में ऐसी मानवता जागत करती हैं, उनका चयन करके उनसे मार्ग-दर्शन लेना चाहिये। गुरु और संतमहात्मा प्रत्येक समय हमारे समीप नहीं होते किन्तु उस स्थिति में उत्तम पुस्तकें भी गुरु के सदृश ही हमें सत्यासत्य का ज्ञान कराती हैं तथा कर्तव्य-बोध की प्रेरणा देती हैं। क्योंकि वे महापुरुषों के द्वारा ही लिखी जाती हैं। उन्हें हम प्रत्येक समय अपने साथ रख सकते हैं तथा किसी भी ज़रूरत के समय उनसे लाभ ले सकते हैं। एक अरब देश की कहावत है-"किताबें जेब में रखा हुअा ऐसा बगीचा है, जो हर समय फ़िजां में अपनी खुशबू बिखेरता रहता है।" (३) केवल मनोरंजन और समय को बिताने वाला साहित्य-- ___ तीसरे प्रकार के साहित्य अथवा पुस्तकों के द्वारा न मानव की आध्यात्मिकता का विकास होता है और न ही मानवता का । इस श्रेणी के साहित्य में समय को निरर्थक व्यतीत करने वाले घटिया किस्म के असंख्य उपन्यास किस्से-कहानियाँ और कुछ क्षणों का मनोरंजन करने वाले चुटकुलों की किताबें आती हैं। हम देखते हैं कि आज के समय में बिना गूढ़-ज्ञान प्राप्त किये और बिना विवेक, बुद्धि के विकास चार अक्षर पढ़कर अनेकों व्यक्ति लेखक बन कर निरर्थक कहानियाँ और उपन्यास केवल पैसा प्राप्त करने की दृष्टि से छपवाते रहते हैं। उन्हें पढ़ने वाले भी अधकचरे, अशिक्षित और अज्ञानी व्यक्ति ही होते हैं, जिन्हें अपनी साधारण शिक्षा-प्राप्ति के कारण न उत्तम किताबों का महत्त्व ही मालम होता है और न ही वे उच्चकोटि के साहित्य को पढ़कर कुछ समझ सकते हैं। परिणाम यह होता है कि ऐसे व्यक्तियों का जीवन खाने, सोने और जीवन-निर्वाह के लिये कमाने में व्यतीत होता रहता है। जो भी समय बचता है उसे वे सत्संगति और सत्साहित्य को पढ़ने में न लगाकर व्यर्थ जाने वाले अनाज के भूसे की तरह लाभहीन पुस्तकें पढ़कर गँवा देते हैं। (४) निकृष्ट साहित्य चौथे प्रकार की पुस्तकें अत्यन्त घटिया साहित्य की श्रेणी में आती हैं। ऐसी पुस्तकें अश्लील और आपराधिक भावना को प्रश्रय देती हैं। इन्हें पढ़कर समाज के होनहार कम उम्र के युवक भी अनैतिकता की ओर बढ़ चलते हैं या चोरी, गिरहकटी और हत्यारों जैसे अपराध Les... समाहिकामे समणे तवामी " जो भ्रमण समाधि की कामना करता है, वही तपस्वी है।" 37 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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