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________________ संस्मरण सुखद / १५१ ठाकुर श्री मानसिंहजी के कुंवर श्री हरिसिंह जी ने इस रहस्य को उजागर किया। इस संबंध में वह स्वयं ही लिखेंगे। २०२५ में तपस्विनीजी श्री महासतीजी श्री उम्मेदकंवर जी महाराज सा० का विक्टोरिया हॉस्पिटल में डॉ टी० सी० जैन द्वारा पेट के अलसर का ऑपरेशन हुआ। महाराजश्री को करीबन ढाई तीन महीने हॉस्पिटल रहना पड़ा। मैं भी सेवा में ही रही। हॉस्पिटल में ही काम करने वाली हरिजन महिला भंवरीबाई के लड़के के पेट का करीबन आठ दफे ऑपरेशन हो चुका, किन्तु उसकी हालत दिन-प्रतिदिन गिरती गई। मात्र उसके जीवन का एक ही सहारा है, वह अत्यन्त दु:खी थी। मैंने सहज भाव में कहा, यदि तुम्हें श्रद्धा हो तो महाराजश्री इधर से निकलें, उनके पैरों के नीचे की रेत लेकर पानी में घोलकर पिला देना । उसने मेरे कहे अनुसार ही किया और वह बिल्कुल ठीक हो गया। भंवरीबाई आज भी जब मुझे मिलती है तो पूज्य महाराजश्री का बहुत उपकार मानती है । जिस जगह हम रहते हैं, पड़ोस में ही मंगला नाम का एक जाट का लड़का रहता है । स्वभाव का बहुत ही उद्दण्ड है। कुछ न कुछ गड़बड़ करता ही रहता है । पू० महासतोजी श्री उमरावकुंवरजी महाराज के दर्शन किया करता है। धीरे-२ स्वभाव में भी बहत अन्तर पाता जा रहा है। एकदिन मेरे से महाराजश्री का फोटो ले गया. उसी दिन अपराध के कारण गिरफ्तार भी हो गया। जब उसकी तलाशी ली गई, पुलिस ने जेब में सन्त का चित्र देखा और मुक्त कर दिया। उसके बाद उसने कोई गलती नहीं की। हमारे गाँव दौराई में मुसलमानों के करीबन साढ़े तीन सौ घर हैं। उन सभो से हमारे बहुत अच्छे ताल्लुकात हैं। हुसैन बाबूजी का लड़का कादर, जिसको महाराजश्री ने गृहस्थपन से ही अपने छोटे भाई की तरह समझा, मेरे देवर श्रीमान् चम्पालालजी (महाराजश्री के पति) का भी उस पर बहुत अधिक स्नेह था। वह बहत बड़े धनाढ्य का लड़का है। अजमेर में इनके पिताजी का बड़ा नाम है। महाराजश्री ने जब दीक्षा ले ली, इनके उपदेश से उसने यह प्रतिज्ञा की कि मैं जिन्दगी भर निरामिष रहँगा। शादी भी वैसी लड़की के साथ करूगा जो मेरी तरह शाकाहारी हो । देश विभाजन के समय वे लोग पाकिस्तान चले गये। समय-समय पर कादरजी आ ही जाते हैं । ३५ वर्ष की उम्र हुई, तब उसने अपनी इच्छानुसार शाकाहारी परिवार की लड़की से ही शादी की। आज भी उसके मन में महाराजश्री के प्रति अत्यधिक श्रद्धा है और जीवन की कई चमत्कारपूर्ण बातें बताता रहता है। यहाँ तक कि कई लोगों से मांस मदिरा का त्याग करवाया है। सन १९८५ का महासतीजीश्री का चौमासा उज्जैन था । उस समय की घटना है, पर्युषण पर्व के दूसरे दिन संभवत: चौदस के दिन मेरा उपवास था। रात को २ बजे उठकर मैं नवकार मंत्र का जाप कर रही थी, साथ ही महाराजश्री की बहुत स्मृति भी पा रही थी। उस समय मेरे घर में किराएदार की स्त्री के पास एक व्यक्ति प्राया जाया करता था। उसका व्यवहार मुझे अच्छा नहीं लगा। उसे आने Jain Education International For Private & Personal Use Only Why Painelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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