SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्चनार्चन/२४ अंततोगत्वा रूपरेखा छपकर पागई। ज्ञान यज्ञ के लिये कार्य प्रारम्भ हुआ। सामग्री एकत्र करने का भार मुझ पर छोड़ा गया । इस गुरुतर कार्य का निर्वाह किस प्रकार होगा? सहयोग मिलेगा अथवा नहीं ? अपेक्षित सामग्री उपलब्ध हो भी सकेगी या नहीं ? आदि ऐसे ही अनेक प्रश्न उस समय मेरे मानसपटल पर मंडराने लगे, किंतु कहा गया है कि पवित्र कार्य पूर्ण लगन, निष्ठा एवं धैर्य के साथ किया जाता है तो उसमें सफलता निश्चित ही मिलती है। इमी मुल-मंत्र को ध्यान में रखते हुए मैंने सर्वप्रथम विद्वानों के पतों की सूची तैयार कर प्रस्तावित रूपरेखा इस अाग्रह के साथ प्रेषित की कि वे अपना चितनपरक शोधपरक ग्रालेख भेजने का कष्ट करें । मेरे प्राग्रह के उत्तर में मुझे आश्वासन मिलने लगे और कुछ स्थानों से सामग्री भी। ५-६ माह की अल्पावधि में ही अपेक्षा से अधिक मामग्री एकत्रित हो गयी। इसे मैं पूजनीया महासतीजी की साधना का ही सुपरिणाम मानता हूँ। प्राप्त सामग्री ग्रंथ की प्रधान संपादक प्रार्या श्री सुप्रभाकुमारीजी म. मा 'सुधा' की सेवा में प्रस्तुत कर दी गई। अाफ्ने समस्त मामग्री का अवलोकन कर आवश्यक संशोधन/परिवर्द्धन किये और फिर सारी सामग्री ब्यावर पं. शोभाचंद्रजी भारिल्ल के पास भिजवा दी। इस ग्रंथ के लिये मुझे सती-मण्डल की ओर से जो प्रेरणा और सहयोग मिला, उसके लिए मैं उनके प्रति अपनी हादिक कृतज्ञता प्रकट करता हूँ । वास्तव में यदि मती-मण्डल की ओर से प्रोत्साहन नहीं मिलता तो शायद यह ग्रंथ मूर्तरूप ही नहीं ले पाता। श्रद्धेय पं. श्री शोभाचन्द्रजी भारिल्ल ने समस्त सामग्री का प्राद्योपांत अवलोकन, संशोधन, परिवर्द्धन किया और मुद्रण के समय भी समुचित मार्ग-दर्शन प्रदान किया तथा सतत क्रियाशील रहे, इसके लिये मैं उनके प्रति हृदय से आभारी हैं । डॉ. हरीन्द्रभूषणजी जैन ने अंग्रेजी विभाग के सम्पादन का दायित्व निभाकर हमारे कार्य को गति प्रदान की, डॉ. नरेन्द्र भानावत ने महत्त्वपूर्ण विषयों पर लब्धप्रतिष्ठित विद्वानों के लेख भिजवाये ही नहीं, वरन् सम्पादित करके भेजे, डॉ. छगनलालजी शास्त्री ने दो बार सामग्री का अवलोकन किया, सम्पादन में सहयोग किया और अंत में समस्त सामग्री को विभाग वार जमा कर प्रेस हेतु तैयार किया, डॉ. प्रेमसुमन जैन, सुश्री कमला जैन 'जीजी' एवं सरदार श्री नरेन्द्रसिंहजी की मोर से भी यथोचित सहयोग मिला। इसके लिये मैं सम्पादक-मण्डल के सभी सदस्यों का हृदय से आभार प्रकट करता हूँ। इस ज्ञानयज्ञ में यदि देश भर के विद्वानों का सहयोग नहीं मिला होता तो यह ग्रंथ अपने इस रूप में प्रकाशित नहीं हो पाता। मुझे विद्वानों का भरपूर सहयोग तो मिला ही, साथ ही उनकी ओर से उपयोगी मार्गदर्शन भी मिला है । यहाँ मैं उन सबके नाम गिनाने की स्थिति में नहीं हैं, कारण की ऐसे नामों कि सुची लम्बी है। अतः मैं बिना नामोल्लेख किये ही उन समस्त विद्वानों के प्रति हृदय से आभार प्रकट करता हूँ, जिनका मुझे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग मिला है। चाहते हुए भी हम सभी सहयोगी विद्वानों की रचनायें इस ग्रंथ में सम्मिलित नहीं कर पाये हैं। जिनकी रचनायें हम प्रकाशित नहीं कर पाये हैं, उनसे क्षमायाचना करते हुए निवेदन करते हैं कि वे इसे अन्यथा न लेते हुए अपना स्नेह/सहयोगभाव यथावत् बनाये रखें। ग्रंथ को मूर्तरूप प्रदान करने में धर्मप्रेमी गुरुभक्तों ने उदार हृदय से स्व-अजित धन का सदुपयोग कर हमें सहयोग प्रदान किया है, उनके प्रति भी मैं हृदय से आभार प्रकट करता हूँ। आई घड़ी अभिनंदन की चरणक वंदन की 1 . 0 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy