SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महासती अर्चनाजी का वंदन-अभिनंदन है हास्यकवि हजारीलाल जैन 'काका' जिनके तप की स्वर्णजयन्ती को युग करे नमन है, महासती अर्चनाजी का वन्दन अभिनन्दन है। उन्निससौ उन्नासी में भादों की सातम आई, श्रीमती अनुपादेवी ने यह महान् निधि पाई। श्रीयुत मांगीलाल जन्म पुत्री का सुन मुस्काये, नगर बुलौना देकर के फिर होने लगे बधाये । फिर तो ढोलक की थापों से गूंजा घर आँगन है, महासती अर्चनाजी का वन्दन अभिनन्दन है । जिनके तप की स्वर्णजयन्ती को युग करे नमन है ।। उन्निससौ चौरानव में अगहन वदि ग्यारस आई, महासती सरदारकुंवरजी के ढिग दीक्षा पाई। अपने पूज्य पिता के पद-चिह्नों पर कदम बढ़ाये, धर्मसाधिका बनकर के जग को उपदेश सुनाये । सौ सुत से वर एक सुता जो करे मार्ग-दर्शन है, महासती अर्चनाजी का वन्दन अभिनन्दन है। जिनके तप को स्वर्णजयन्ती को युग करे नमन है ।। काश्मीर पंजाब हिमाचल में जा अलख जगाया, मध्य और उत्तर प्रदेश में घर घर बिगुल बजाया। जिनके उपदेशों से गूंजी अरावली की घाटी, धर्म-ध्यान से कंचन करली नश्वर तन की माटी। ऐसे साध्वीरत्न का 'काका' बार-बार अर्चन है, महासती अर्चनाजी का वन्दन अभिनन्दन है। जिनके तप की स्वर्णजयन्ती को युग करे नमन है ।। आई घड़ी भिनंदन की पकमलका चंदन की अर्चनार्चन | ५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy