SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नहीं है मुझ में तप, वैयावृत्त्य, सेवा के गुण, पर उत्कंठा है, इनमें होना चाहती हूँ निपुण । आपके आशीर्वाद एवं सत्कृपा से ही निश्चय, टलेंगे समस्त दुर्गुण, समाविष्ट होंगे सद्गुण || किन-किन की महिमा करू इनमें गुण अनेक हैं, करना बेड़ा पार शिष्या का यही "मेरी" टेक है । "परम" सौभाग्य का विषय है कि हम गुरुणी शिष्या केपितृ- नाम एक है और दीक्षा स्थल एक है || छोड़ दिया जिन्होंने सांसारिक मोह का बंधन, करते हैं जन-कल्याण, हरते दुखियों का क्रंदन । ऐसी गुरुवर्या के श्रीचरणों में श्रद्धापूर्वक - कर रही है ' हेमप्रभा' वन्दन अभिनन्दन || कितना सुन्दर है दादिया ग्राम जहाँ जन्मे गुरुणीजी महान जन्म लेकर माँ अनुपा के अंक से जहाँ जन्मीं गुरूणी महान श्री गुरुणीजी म. सा. का. प्र. अध्यात्मयोगिनी परम श्रद्धेय उमराव कुंवरजी अर्चनाजी म. सा. की सुशिष्या विजयप्रभा हम क्यों न हों उन पर कुर्बान प्रथम खण्ड / २३ सुशोभित किया धरा के सुकुमार अंक को दिया आपने भूली भटकी दुनियाँ को ज्ञान आप Jain Education International कितना सुन्दर है दादिया ग्राम ||१|| मेरे जीवन को भी किया छविमान कितना सुन्दर है दादिया ग्राम ||२|| दुखों से आहत ग्रापके चरणों में झुक जाए श्राप उन्हें अपनाएँ जिन्हें जग ठुकराए श्रमणी संव की शान हैं जहाँ जन्में गुरुणीजी महान । अनवरत भरती हैं आप ज्योतिर्मय चिन्तन कितना सुन्दर है दादिया ग्राम For Private & Personal Use Only 00 आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy