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________________ धर्म-साधना में चेतनाकेन्द्रों का महत्त्व श्रीचन्द सुराना 'सरस अर्चनार्चन गणधर गौतम ने केशीस्वामी के एक प्रश्न के उत्तर में बताया सरीरमाहु नाव त्ति, जीवो वुच्चइ नाविओ। संसारो अण्णवो वुत्तो, जं तरंति महेसिणो ॥ -(उत्तरा० २३१७३) इस शरीर (मानव शरीर) को नाव कहा गया है और जीव (आत्मा) नाविक (नाव को चलाने वाला) है। संसार को सागर कहा गया है। महर्षि (साधक) इस (संसार-सागर) को पार कर जाते हैं। केशीस्वामी और गौतम गणधर दोनों ही ज्ञानी थे, चार ज्ञान (मति, श्रन, अवधि, मनःपर्यव) के धारी थे। शरीर का तिरस्कार अपनी पारस्परिक ज्ञान-चर्चा में उन्होंने जो गूढ़ रहस्य की बात कही, उस तक सामान्यतया हमारी दृष्टि नहीं पहुँच सकी। हमने जीव का महत्त्व तो स्वीकार किया, साधना का महत्त्व भी हमने माना, किन्तु मोक्ष-साधना के साधन शरीर को हमने तिरस्कृत सा-कर दिया। नाविक का महत्त्व स्वीकार करके हम इतनी गहराई में उतरते चले गये कि नाव (शरीर) हमारी दृष्टि में महत्त्वहीन हो गई। नाव का महत्त्व हमने इतना ही समझा कि छिद्रवाली (प्रस्सावणी) न हो; किन्तु जिस काठ से वह निर्मित हुई है, उसकी अान्तरिक मजबूती, दृढ़ता तथा संरचना आदि को जानने, समझने की जरूरत ही न समझी। नाविक के महत्त्व के सामने नाव उपेक्षित हो गई। साधना की दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण अंग की उपेक्षा थी। इसी प्रकार साधना के साधन इस शरीर में अन्दर क्या हो रहा है ? इसकी आन्तरिक स्थिति कैसी है, इस बात की ओर ध्यान नहीं दिया। ध्यान देने की बात तो बहुत दूर रही, हमने तो नव मलद्वार बहें निशि वासर चर्म लपेटी सोहै। भीतर देखत या सम जग में और अपावन को है ॥ कहकर, शरीर को अपावन मानकर इसे घृणित समझ लिया। यह भूल गये कि मोक्षसाधना में इस शरीर का कितना महत्त्व है। शरीर के सहयोग के अभाव में साधक अपनी साधना में एक कदम भी नहीं बढ़ सकता। सही शब्दों में, वह साधना कर ही नहीं सकता। हमने 'मोक्खसाहणहेउस्स साहुदेहउस्स धारणा'-इस वाक्य की गंभीरता को नहीं समझा। शास्त्रों में शुक्लध्यान के लिए, मोक्ष-साधना के लिए अत्यन्त दृढ शरीर की आवश्यकता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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