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________________ [ ४२ ] www ब्राह्मस्फुटसिद्धांत: सज्जनगणितगोल वित्प्रत्यै । त्रिशद् वर्षेण कृतो जिष्णुसुत ब्रह्मगुप्तेन ॥ ( ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त, श्रध्याय २४) चीनी यात्री हुएनसांग वि. सं. ६९७ के लगभग में इस प्रदेश में श्राया होना जान पड़ता है । हुएनसांग ने अपनी यात्रा विवरण की पुस्तक सि-यु-कि में मालवे के बाद क्रमशः प्रचिल, कच्छ, वलभी, आनंदपुर, सौराष्ट्र ( सोरठ) और गुर्जर (गुजरात) देशों का वर्णन किया है। गुर्जरदेश के बारे में वह लिखता है कि वल्लभीदेश से करीब ३०० मील उत्तर जाने पर गुर्जर राज्य में पहुंचते हैं । यह राज्य अनुमानतः ८३३ मील के घेरे में है । इस देश की राजधानी भीनमाल है जो करीब ५ मील के घेरे में आबाद है । जमीन की पैदावार एवं लोगों की रीतभात सोरठदेश के लोगों के जैसी है । आबादी घनी है एवं यहां के लोग धनाढ्य और संपन्न हैं । वे बहुधा नास्तिक हैं । यहाँ पर अनेकों दहाई - देवमन्दिर हैं । राजा क्षत्रियजातिका है । यहां पर यह बात विशेष महत्त्वकी है कि हुएनसांगने भीनमाल के लोगोंको नास्तिक बताया है। इसका कारण केवल यही होना चाहिए कि भीनमालमें बौद्धधर्म के माननेवाले कोई नहीं थे । अन्यथा वहां पर उस कालमें अनेकों देवमन्दिर होना भी हुएनसांगने बताया है । अर्थात् लोग वैदिकमतके या जैनमतके अनुयायी होंगे । हुएनसांगने अपने यात्रावर्णनमें लिखा है कि भीनमालका राजा २० वर्षका युवान है एवं वह बुद्धिमान और पराक्रमी है; वह बुद्धिमानों का बड़ा श्रादर करता है । राजा व्याघ्रमुख (वर्मलात) का प्रधानमन्त्री सुप्रभदेव ब्राह्मण था । सुप्रभदेव कवि माघका पितामह था । प्राचीनकाल में भारत के विद्वान निरभिमानी एवं निःस्वार्थी होते थे । इस लिए बहुधा उनके ग्रन्थोंमें उनके नाम, स्थान व काल वे नहीं लिखते थे । अपने जीवनका परिचय अपनी ही कृतिमें देना वे आडम्बर समझते थे । इसलिए प्राचीन इतिहासकी कड़ी ग्रन्थों के आधार पर ढूंढना बड़ा कठिन कार्य है । कवि माघ संस्कृत भाषाके श्रेष्ठ कवि माने जाते हैं । ऐसी प्रसिद्धि चली श्राती है कि कालिदासके ग्रन्थोंमें उपमा, भारविके किरातार्जुनीय में अर्थ गौरव, और दंडीके ग्रन्थोंमें पदलालित्यकी विशेषता है किन्तु माघके शिशुपालवधमें इन तीनों गुणोंका समावेश है । माघ किस काल में हुए थे यह उनके ग्रन्थ शिशुपालवधसे ज्ञात नहीं होता। किंतु कविने उक्त ग्रन्थके अन्त में अपने देशवंशका परिचय दिया है । Jain Education International सर्वाधिकारी सुकृताधिकारः श्रीवर्मलाख्यस्य बभूव राज्ञः असक्तहृष्टिविरजाः सदैव देवोऽपरः सुप्रभदेवनामा ॥१॥ काले मितं तथ्यमुदर्कपथ्यं तथागतस्येव जनः सचेताः विनानुरोधात्स्वहितेच्छयैव महीपतिर्यस्य वचश्चकार ॥२॥ तस्याभवद्दत्तक इत्युदात्तः क्षमी मृदुर्धर्मपरस्तनूजः यं वीक्ष्य वैयासमजातशत्रोर्वचोगुणग्राहि जनैः प्रतीये || ३ || सर्वेण सर्वाश्रय इत्यनिन्द्यमानन्दभाजा जनितं जनेन यश्च द्वितीयं स्वयमद्वितीयो मुख्यः सतां गौणमवाप नाम ॥४॥ श्रीशब्द रम्यकृत- सर्ग - समाप्तिलक्ष्म लक्ष्मीपतेश्चरितकीर्तनमात्रचारु । तस्यात्मजः सुकविकीर्तिदुराशयादः काव्यं व्यधात शिशुपालवधाभिधानम् ॥ ५ ॥ ( शिशुपालवधकाव्य के अंतका कविवंशवर्णन ) ચમચી આર્ય કલ્યાણ ગૌતમ સ્મૃતિ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012034
Book TitleArya Kalyan Gautam Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalaprabhsagar
PublisherKalyansagarsuri Granth Prakashan Kendra
Publication Year
Total Pages1160
LanguageHindi, Sanskrit, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size35 MB
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