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________________ मुनीश्री जिनविजयजी की कहानी छः महिना पड़ी रही। अगर हमारे पास होती तो उद्धार हो जाता। हमारी इच्छा तो यही रहती है कि ऐसी दुर्लभ अलभ्य कृतियां हैं उनका उद्धार हो जाये तो अच्छा है। हमारी दृष्टि में इन मणियों की जो कीमत है वह औरों के लिये काँच भी नहीं है और हम जिस ढंग से इसका उद्धार कर सकेंगे वैसा औरों के लिये अशक्य है । बम्बई २७-६-३६ "राजस्थानी" में मेरे परिचय के विचार को सुनकर मैं अापके सौजन्य का बहत ही कृतज्ञ हैंलेकिन मुझे अपने विषय में कहने लिखने का खूब संकोच होता है। ग्रन्थ और ग्रन्थकार के लिए पांच वर्ष तक उनका तकाजा रहा तो भी मैं एक अक्षर भी उन्हें न दे सका। स्वय ही इधर उधर से उन्होंने इकठ्ठा किया था । बडोदे सरकार की ओर से जो व्याख्यान माला निकली और जिसकी नकल आप अहमदाबाद से ले गये हैं उसमें पण्डित श्री लालचन्द जी गांधी ने और डा० हीरानन्द जी शास्त्री ने कुछ लिखा है-डा. सुनीतिकुमार चटर्जी ने अंग्रेजी में सिघी जैन ग्रन्थमाला के बुलेटिन में कुछ लिखा है-और भी बहुत से मित्रों ने इधर उधर लिखा है--लेकिन मेरे पास नहीं है । लेखों वगैरह की सूची भी मेरे पास नहीं है और सब कुछ याद भी नहीं है-'सरस्वती' में सबसे पहले लेख लिखने शुरू किये थे स्वयं प्राचार्य द्विवेदी जी ने उनकी बड़ी प्रशंसा की थी और मेरे दो एक गुजराती लेखों का खुद उन्होंने हिन्दी करके अपने नाम से प्रकाशित कर मुझे आत्मीय कह कर लिखा है । यह तो ठीक तब हो सकता है कि आपके जैसा सन्मित्र पास में बैठकर कुछ नोट करले और फिर लिख लें । मेरे से यह होना कठिन है। बम्बई ३-१०-३६ पहले के प्रारम्भ के लेख जैन हितैषी, आत्मानन्द प्रकाश, बम्बई समाचार, गुजराती कान्फ्रेंस हैराल्ड ग्रादि में निकलते थे, उनकी तो मुझे पूरी स्मृति भी नहीं रही है, मेरे पास उनके कटिंग वगैरह भी नहीं है। सम्पादित ग्रन्थों के नाम प्रायः मिल जायेंगे । बम्बई यूनिवर्सिटी में दिये व्याख्यान अभी छपे नहीं-मेरी तरफ से ही विलम्ब है लेकिन क्या किया जाये। आप जानते ही हैं कि अपना काम कितना श्रमदाय और सामग्री की अपेक्षा रखता है। इस वर्ष उनको भी तैयार करने का प्रोग्राम है। बम्बई ७-१०-३६ हमारी इच्छा तो केवल साहित्य के उद्धार की है और यह सब कृतियां प्रायः अापके ही गच्छ की हैं सो उद्धार करें यश प्रापको भी होगा ही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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