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________________ मुनि श्री जिनविजयजी की कहानी उनके स्वलिखित पत्रों की जबानी किसी भी व्यक्ति के पत्र उसके सही मूल्यांकन के बहुत बड़े और महत्त्वपूर्ण साधन होते हैं। समय समय पर मनुष्य की प्रकृत्ति, रुचि, विचार, प्रगति एवं प्रवत्ति में जो परिवर्तन होता रहता है उसका यथार्थ परिचय इन पत्रों के माध्यम से भलीभांति मिल जाता है। इतना ही नहीं पत्र लेखक की भावी योजनाओं, कल्पनाओं, उसकी कार्य-पद्धति और सूक्ष्मभावों का पता भी इन पत्रों से ही सर्वाधिक मिलता है। पत्र लिखते समय व्यक्ति सहज और सरल बनकर अपने सारे सुख-दुख, हर्ष शोकादि की अनुभूति को व्यक्त कर देता है। अत: व्यक्ति के स्वयं के लिखे हये पत्र-साहित्य का बड़ा महत्व है। __सस्ता-साहित्य मंडल से प्रकाशित कुछ पुरानी चिट्ठियां (श्री जवाहरलाल नेहरू के संग्रह की) नामक पुस्तक के प्रारम्भ-प्रकाशकीय में लिखा है-"संसार की सभी विकसित भाषाओं में पत्र साहित्य को बड़ा महत्व दिया जाता है और उसके भंडार में वृद्धि करने के लिये बराबर गम्भीर प्रयत्न होते रहते हैं। अनेक भाषाओं में ऐसे पत्र संग्रह निकले हैं और निकल रहे हैं। जो पाठकों का मनोरंजन तो करते ही हैं, उनको प्रेरणा भी देते हैं"। सच बात यह है कि पत्रों की अपनी विशेषता होती है। वे दिल खोलकर लिखे जाते हैं। उनमें लिखनेवालों का हृदय और व्यक्तित्व बड़ी सच्चाई के साथ बोलते हैं। बनावट अथवा सजावट की उनमें गुजाइश नहीं होती यही कारण है कि पाठकों के मन पर उनका सीधा और गहरा असर पड़ता है। पत्र साहित्य की लोकप्रियता भी इसी वजह से है। सस्ता साहित्य मंडल, हिन्दुस्तानी अकादमी, आदि कई स्थानों से गांधी, विनोबा, जमनालाल बजाज, महावीर प्रसाद द्विवेदी, गालिब, आदि के पत्र संग्रह निकल चुके हैं। पर वे मण में कण की तरह और समुद्र में बिन्दु की तरह हैं। पत्र लेखन पद्धति के रूप में कई संस्कृत ग्रन्थ मिलते हैं उनमें से कुछ प्रकाशित भी हो चुके हैं। उन ग्रन्थों में किन किन व्यक्तियों को किस-किस तरह से पत्र लिखे जाने चाहिये उसके मजमून हैं । विशिष्ट व्यक्तियों के लम्बे लम्बे विशेषण विशेष रूप से उल्लेखनीय है। पुरातत्वाचार्य मुनि जिनविजयजी ने समय-समय पर अनेकों व्यक्तियों को हजारों पत्र लिखे होंगे। पर उनको सुरक्षित रखने वाले विरले ही व्यक्ति होंगे। आदरणीय श्री अगरचन्द जी भंवरलाल नाहटा का मुनिजी से गत ३० वर्षों से विशिष्ट साहित्यिक संबंध रहा है। मुनि जी के अधिक पत्रों को उन्होंने प्रयत्नपूर्वक सम्हाल कर रखा है । इन पत्रों द्वारा मुनिजी के जीवन एवं कार्य पर काफी अच्छा प्रकाश पड़ता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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