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________________ परिपूर्ति स्थितिमा रहेवा सर्जायेलाज नथी, अटले जे जे नवां स्वप्नो प्रावे तेने साकार करवा पूरो पुरुषार्थ पण करे । प्रेमने पोताना काम बदल जे बलतर मल ते तो मां खर्चीज नाखे, पण वधारामां अमने जारपनार प्रेमना चाहक मित्रो जे कांई मदद करे ते पण आवा सेवाकर्यमा तेश्रो खर्चीने ज संतोष माने । मुनिजीनी वृत्ति अने प्रवृत्तिमांथी ग्रेक तत्त्व तारवव होय तो ते प्रेज छे के तेमना अंक हाथमां जे प्रावक पडे ते प्रेमना बीजा हाथने लीधे हमेशा प्रोछीज पडवानी । संग्रहमा प्रेमनी श्रद्वा नहीं, अनेन नवा सो उपाड्य' बिना प्रेमने जंप नहीं । प्रा तत्त्वने लीधे तेमणे ने अाश्रमनी आसपास बीजी पण केटलीक प्रवृत्तिमा शरू करी अने विकसावी छ । मूले मेवाडना, विद्यापुरुष तरीके जाणीता, इतिसास, शिल्प, स्थापत्य प्रादिना रसिक अने निष्णात जेवा; ग्रेटले राजा थानमा अने त्यांनी सरकारमा जे केटलाक विद्वानो अने प्राच्य विद्याना रसिको तथा पुरातन वस्तु सग्रहना उपासको हता अने छे श्रे बधानु ध्यान क्रमे क्रमे मुनिजीने राजस्थाननी प्रावी कोइ सर्वव्यापक प्रवृत्तिमा जोडवा तरफ खेंचायु । अने ते प्रमाणे समग्र राजस्थान नो समावेश थाय ग्रेवी श्रेक योजना तैयार करी तेमां मुनिजीने निर्णायक स्थाने गोठव्या; जेने परिणामे राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान नामे संस्थानो जन्म थयो, अने तेन मुख्य केन्द्र जोधपुरमां अने केटलीक साखाम्रो राजस्थनना जदा जदा: करे छ । अा मुख्य केन्द्र अने तेनी जुदी जुदी शाखाप्रोमां प्राच्य तत्त्वना साहित्य, शिल्प आदि नमूनाप्रोना अने वस्तुप्रोना अवा विपुल संग्रह थयो छे के जेने जोनार ग्रे रीते आश्चर्य पामे छे के पाटलाटूका गला मां मुनिजीग्रे केवो भगीरथ पुरुषार्थ को छ । साथे साथे सिंघी जैन ग्रंथमाला कामने संभालवा उपरांत प्रा संस्था द्वारा प्रकाशित थनारा विविध विषयना संख्याबंध ग्रंथोनी जबाबदारी पण अमने शिरे रहेली छ । प्रत्यार लगीमां आवी बवी प्रथमालामो मारफत तेप्रोग्रे प्राशरे बधो जेटला प्रथो संपादित-प्रकाशित कर्या छ । मुनिजी पोतानी कांचली अंक पछी अंक छोड़ता ज रया छ, ते प्रमाणे पेला सर्वोदय साधनाश्रम वधूज सर्वस्व भूदानना प्रवर्तक श्री विनोबाजी ने अर्थी दइ अनी नजीकमां पोताने अने पोताना प्राश्रितोने रहेवा प्रादिनी सगवड माटे जोइतां नवां मकान वगेरे पोतानी ज कल्पनाथी पोताना नकशाप्रमाणे ऊभा करी लीधा छ । अने राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठिाननू काम त्यांथी जोधपुर अने बीजा स्थलोमां जता रही सतत करता रहे छे । आ बधु थतु हतु त्यारेज प्रेमना मनमा ओमनी वीर प्रकृति, इतिहास ज्ञान अने विद्योपासना अादिने लीधे नवां मनोरथ पुष्पो खोली रय्यां हता । तेमां चित्तोडने मुख्य स्थान हतु। मुनिजी चित्तोडने वीरत्वनु तेमज विद्यानु पण तं र्थ माने छ । तेमना मनमां ने सस्कार दृढ़ छे के राणा प्रताप अने तेमना पूर्वजो तेमज वंशजोग्रे जे क्षात्रतेज मेवाडमां प्रगटाव्यु अने चित्तौडमां के विशेषरूपे दीप्युते क्षात्रतेज ग्रे मात्र मेवाडनी संपत्ति नथी; ते तो ग्रेक भारतीय संपत्ति छे । बीजु मना मनमां ग्रे पण छे के शस्त्र पकडनार अने प्राणोनी कुरबानी करनार वर्ग होय त्यारे पण कोइ वा कुवेरनी जरूर रहेज छ के जे वीरत्वनी पोषक बधा गोठवरण करे । मुनिजी में प्रावी कुबेरनी प्रतिक भामाशामां जोइ वली. मुनिजीनी मूल विद्योप सनानी वृत्ति तो समदर्शी आचार्य हरिभद्र उपरना तेमना अतिहासिक निबंधथी लोकोनो ध्यानमां आवी हतो। अने मुनिजीनो प्राचार्य हरिभद्र प्रत्ये ग्रेटलोबधो दृढ अादर छे के तेरो तेमने जैन परंपराना नव संस्कारक गणी हृदयमां उपासे छे । आवा बधा जुदा जुदा मनोरथो माथी तेमनु क्रियाशील मन ग्रे मार्गे विचरतु हतु के कोइ पण रीते चित्तौड Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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