________________
परिपूर्ति
१६२८ सुधीनां लगभग तेरवर्षना मारा संस्मरणो मुनिजी विषे लखेलां प्रसिद्ध थयेलां ज छ । अ मां मना अगेनी पाथानी वातो टूकमा पण प्रावी गई छे ना अनुसंधानमांज प्रस्तुत लखाण छ ।
१६२८ थो आज सुधीनो लगभग ३८ वर्षनो गालो पहेला गाला करतां धणो मोटो छे, अने प्रा गाला दरम्यान मुनिजीनी अनेक विधि प्रवृत्तियो अनेक दिशामां फंटाई अने विकास पणु पामी छे ग्रे बधी प्रवृत्ति प्रोनु सांगोपांग दर्शन तो तेश्रो पोते ज करावे अ योग्य गणाय । हु तो अं प्रवृत्तिना केटलाक सीमा चिन्ह जेवा मुद्दामोनो ज संक्षेपमा निर्देश करी या परिपूर्ति लखवा धारू छु।।
१६२८ ना उनालामां मुनिजी जर्मनी गया, अने त्यांथी १६२६ ना छेल्ला भागमां पाछा फर्या । ते प्रो अमदाबाद पाछा प्रावी पोतानी उपासित विद्या-साहित्यनी प्रवृत्तिमा जोडाय ते पहेलां तेमनी वीरवृत्तिने अाह्वान करतु वातावरण प्रा देशमाँ रचायु हतु । पंडित श्री नेहरुना प्रमुखपणा नीचे लाहोर कोंग्रेसमां पूर्णस्वातंत्र्यना ठरावनी पूर्व भूमिका मक्कमपणे रचाती हती । लाहोर कांग्रेस प्रावी ग्रेमा मुनिजी गया हता । ह अने बीजा अमारा साथीनो साथे हताज । त्यां कोंग्रे से जे सम्पूर्ण स्वातंत्र्य प्राप्तिनो ठराव पास कर्यो तेवे लीधे देशना सजीव मानसमां अंक नवो चमकार प्रगट्यो। मुनिजी मामांना अंक हता हवे १६३० मां अंमनी सामे बे मार्ग हताः अंक विद्या-साहित्यना वर्तुलमा पुराई पलोठी वाली बेसी जवानो, अने बीजो स्वातंत्र्यनी हाकलने सेवक तरीके बधावी लेवानो मुनिजीमे तत्काल निर्णय करी बीजो मार्ग स्वीकार्यो, अने पहेला मार्गने अमुक समय लगी मुलतवी राख्यो ।
१६३०ना मार्चमां गांधीजीनी विश्वविख्यात दांडी कूच शरू थई । देशना खूणे खूणे मीठानो सत्याग्रह शरू थयो। मुनिजी श्रे सत्याग्रहने परिणामे जेलमां गया । नासिकनी जेलमा अमनो अने श्री के. प्रेम. मुनशीजीनो परिचय वधारे दृढ थयो । प्रने त्यां बन्ने वच्चे अमक अशे विद्या विषयक विचारोनी पाप-ले पणु थई ।
जेलमाथी छूट्या पछी हवे पहेलां मुलतवी राखेल मार्गेज जवानुमने माटे निर्मायेलु । प्रा मार्गनी पूर्व भूमिका तो अमेना जर्मनी थी पाछा पाव्या पहेलांज तैयार थई चुकी हती। अजीमगंज निवासी श्री बहादुरसिंहजी सिंघीग्रे जैन विद्या-साहित्यना व्यापक विकास माटे अमुक निश्चित विचार करी राखेलो, अने तेना केन्द्रमा मुनिजी हता। मुनिजी कलकत्तामा, शांतिनिकेतनमां के अन्यत्र ज्यां बेसी प्रावी प्रवृत्ति करवा इच्छे त्या प्रे प्रवृत्तिने लगती बधी आर्थिक जवाबदारी उठाववानो भार सिंघजी श्रे स्वेच्छाथी ज स्वीकारेलो । मुनिजीने शांतिनिकेतन पसंद कयूं। टागोर जेवी विभूतिना सन्निधानमा रहेवानु मले अने श्री विधुशेखर शास्त्री जी तथा श्री क्षिती मोहनसेन अवा समर्थ परिचित विद्वानोन साहचर्य सधाय | प्रेमने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org