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________________ ४ ] पं० सुखलाल संघवी पूनाना विद्यामय वातावरणे आकर्षी । तेरो पूज्य बुद्धसाधुअोनो साथ छोड़ी दुःखित मने प्रकला पड्या, अने पगे चालता पूना पहोंच्या । अहीं भंडार अने विद्वानोना इष्टतम परिचयथी तेमने खूब गोठी गयु । त्यानी प्राकृतिक रमणीयता, सादु जीवन अने विद्यार्थी तथा विद्वानोनी बहलतायो तेमने पूनाना स्थायी निवास मांटे ललचाव्या । भारत जैन विद्यालयनी चालु संस्थांने तेमणे स्थायी रूप पवा प्रयत्न कर्यो, अने बीजी बाजु भांडारकर इन्स्टीट्यूटमांनो लिखित जैन पुस्तक संग्रह जोइ काढ्यो: प्रामांथी तेमनी शोधक बुद्धिने पुष्कल सामग्री मली। . अत्यार सुघी तेरो मने के कमने दृढ जनत्वना पाश्रय तले विद्याव्यासंग पोषी रह्या हता, ते जैनत्व हवे पूनाना राष्ट्रीय वातावरणमां, अने देश व्यापी होलचालनां वावाझोडामां प्रोसरवा मांड्यु । असहकारना मंडाणना दिवसो अाव्या, अने तेमनी वधु विशाल कार्यक्षेत्र शोधवानी वृत्ति ने जोइतु नवु कार्यक्षेत्र मली आव्यु। प्रा अमनो त्रीजो मंथनकाल । अने ते सौथी वधारे महत्वनो । कारण, या वखते कांइ नानी उमरमां जैन साधुवेष फेंकी दीधो तेवी स्थिति न हती। प्रत्यारे तेयो जैन अने जैनेतर विद्वानोमां अंक प्रसिद्ध लेखक तरीके जाणीता थया हता। जैन साधु तरीकेनु जीवन समाप्त करवू अने नवु जीवन शुरू करवु, ते केम अने केवी रीते तथा शा माटे विकट प्रश्नो घणा दिवस तेमने उजागरो कराव्यो। उजागरानां आ कारणोमां अंक विशेष कारण हतु जे नोंधवा योग्य छ । पिता तो पहेला गुजरी गयेला तेनी तेमने खबर हती। पण माता जीवित तेथी तेमनु दर्शन कर अं इच्छा प्रबल थइ हती। अंकबार तेप्रोग्रे मने कहेलु के हुं माने कदी जोइ शकीश के नहि ! अने जाउं तो माताजी अोलखशे के नहिं ? शुमारे माटे अं जन्मस्थान तद्दन पुनर्जन्म जेवुथइ गयुनथी ? स्वप्ननी वस्तुप्रो जेवी पण जन्मस्थाननी वस्तुओं मने आजे स्पष्ट नथी' । माताने मलवा ट्रेनमां बेसवानु जे पगलु भरी शक्या नहि ते पगलुराष्ट्रीयता मोजाना बेगमा भयु । जैन साधुजीवननां बंधनो छोड़ी देवानो पोतानो निश्चय तेमणे वर्तमान पत्रोमां प्रसिद्ध कर्यो अने गुजरात विद्यापीठनी स्थापनां साथे पुरातत्व मन्दिरनी योजनाने अगे तेमने अमदाबाद बोलाव्या त्यारे ते प्रो रेलवे ट्रेनथी गया अने त्यार, थी तेमणे रेलवे विहार शरू कर्यो छे । महात्माजी अने विद्यापीठना कार्यकर्तामोडे तेमनी पुरातत्व मंदिर मां नीमणूक करी अने तेमना जीवननो नवो युग शरु थयो । जैन साधु मटी तेश्रो पुरातत्त्व मंदिरना प्राचार्य थया _ मंदिर शरु करवाना काममां तेने माताजीने मलवा तरत तो न जाइ शक्या, पण अकाद वर्ष पछी गया त्यारे माताजी विदेह थयेला । जिनविजयजी या आघ तथी रडी पड्या। जिनविजयजी अ संसार पराङ मुख संन्यासनां पाटलां बरस गाल यां छे पण तेमनामां मानवताना सर्व कुमला भावो छ । तेमने अनुयायीप्रो करतां सहृदय मित्रो वधारे छे तेनु ा कारण छ । लगभग पाठ वर्षना पुरातत्त्व मंदिरना कार्यकाल दरमियान तेसोनी भावना अने विचारणामां तेमना क्रांतिकारी स्वभाव प्रमाणे मोटु परिवर्तन थयु। ... पुरातत्त्व मंदिरनो महत्त्वनो पुस्तक संग्रह मुख्यपणे तेमनी पसंदगीनु परिणाम छ । अहीं पाव्या पछी पण तेमनु बाचन अने अवलोकन सतत चालु ज रह्य । अनेक दिशाओमा तेमनी कार्य करवानी वृत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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