SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 456
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्यमेव जयते नानतम् 'सत्यमेव जयते नानृतम्-ए अथर्ववेदना मुण्डकोपनिषद मांनु (३-१-६) वाक्य घणा खरा जाणे छे, एमांनो पहेलो भाग स्वतन्त्र भारतनु ध्येय वाक्य तरीके पण चुटायो छे । ए श्रति वाक्य नो अर्थ सत्यनोज (सदा) जय जूठानो नहीं। एवो आज सघी लेवा प्राव्यो छे। पण उपनिषद मां जे संदर्भ माँ ए वाक्य प्राव्यु छे ते जोतां उपरनो अर्थ योग्य नथी एम लागे छे, ए अर्थ करती वखते 'सत्यम्' अने 'अनृतम्' ने वाक्य ना कर्ता लेवामां आव्या छे, पण ते योग्य न थी। ए वाक्य मां 'सत्यम्' (अने अनृतम्) ए कर्म रोई ऋषि ने कर्ता तरीके स्वीकारवानो छ । एम करतां ए वाक्य नो अर्थ प्रावो थशे 'ऋषि सत्यज मेलवे छे, अनृत मेलवतो नथी' । उपनिषदो मां ऋषि मुनियो नु ध्येय ब्रह्म प्राप्ति करवा नु छ, अने ए ब्रह्म एटलेज अन्तिम सत्य (सत्यस्य सत्यम्) । अहिया सत्य ए साध्य छे, ए सत्य करतां जे जुदु होय ते बधु अनृत गणाय, ए साध्य थई शकतु नथी । ब्रह्म ना सत्य अने असत्य रूपो विशे में -उपनिषद मां अनुवाक्य छे-द्वे वाव ब्रह्मणो रूपे मूर्तच अमूर्त च। अथ यन्मूर्त तद असत्यम्, यमूर्त तत् सत्यम् । तद् ब्रह्म तज्ज्योति: मैत्रि ६,३ । जर्मन तत्वज्ञ Deusseu पण 'सत्यमेव जयते' नो पानोज अर्थ करे छे -Wahiheit Crisicgter (ie.ativadm of. Chandh. 16) nieht unwebrheit" अपर श्रति वाक्य नो नवो आपेलो अर्थ स्पष्ट थाय तेटला माटे मुण्डकोपनिषद मांना बे श्लोक जोव ठीक थशे सत्येन लभ्यस्तपसा ह्यष आत्मा सम्यक् ज्ञानेन ब्रह्मचर्येण नित्यम् । अन्तः गरीरे ज्योतिर्मयो हि शुभ्रो यं पश्यंति यतयः क्षीगा दोषाः ।। सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः । योनाक्रम वृन्त्य॒षयो ह्याप्तकामा यत्र न तत्सत्यस्य परमं निधानम् ।। (३,१५--६) आमांनां पहेला श्लोक मां सत्यना गणतरी तप, सम्यकज्ञान, वगैरे साधनो मां करी छे, अने तेवडे प्रात्म प्राप्ति थाय छे एम का छे। अने बीजा श्लोक मां एम कह्य' छे के जे देवयान थी ऋषिो जाय छे ते सत्य थी वितत छे अने पाखरे ते सोज्यां पहोंचे छे ते सत्यनुपरम निधान छ । तेकी श्लोक ना प्रारंभ मां प्रावतां 'सत्यमेव जयते' ए श्रुति वचन मां सत्य एटले व्यावहारिक सत्य अने ए वचन नो लौकिक दृष्टिाए करेलो अर्थ 'सत्यनोज सदा जय थाय छे' एवो अर्थ करवो योग्व लागत नथी, ऋषि पाखरे ज्यां पहोंचे छे त्यां १. ऋषि जे मार्ग वडे जाय छे तेनु वर्णन मुण्डक मां जेम सत्येन पन्था विततो देवायानः' एवु कयु छे तेम वृहदारण्यक मां (४.४.६) मार्ग विशे एष पन्था ब्रह्मगह अनुक्तिः तेन एति ब्रह्मवित....एम का छे । पा वन्ने वाक्यो छेक समानार्थक न थी तो ए तेपर थी मुण्डकमांना उपला श्लोक मां सत्य ए ब्रह्म ना अर्थ मां छे ए जणाई आवशे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy