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________________ २६६ ] Jain Education International अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर पिता की मृत्यु के पश्चात् महाराज काकिल ने आमेर को जीता और खोह के स्थान पर इसे राजधानी बनाया। श्री काकिल का राज्य काल ३ वर्ष का ही रहा, परन्तु इतिहास में आपका नाम प्रसिद्ध है । आपने आमेर को राजधानी बनाने के अतिरिक्त श्रमेर में अम्बिकेश्वर महादेव की स्थापना की । यह मन्दिर आज भी विद्यमान है । गालवाश्रम ( गलता ) के पर्वतों में पृथ्वी में विद्यमान, अनेक नागों से वलयित इस मूर्ति को लाकर भगवती के आदेश से आमेर में स्थापना की थी। इस संबन्ध में इस काव्य में लिखा है - ( भगवती काकिल को कह रही है ) पृथ्वीराज विजय - एक ऐतिहासिक महाकाव्य प्रत्यापत्यपुनर्वियान्ति च परागृष्टविनष्टानुगाः । एवञ्चञ्चलवित्रमां बहुतमास्ते दाक्षिणात्या भटादृष्टो चण्डपराक्रमस्य नृपतेश्चक्रे असं विच्युताम् । ।२३।। "तं संहत्य रणे निपत्य नृपतिं हेति प्रणीतोन्नतिं चञ्चद्द्द्वारकचन्द्रहासशत कैरेकैकश सर्वतः 1 घ्नन्तं भूरि बलाम्बुजं धनुरनयं रहा विवाहाजवादुद्विग्नाविमयं भयंकरममु ते दाक्षिणेशानुगा ॥२६॥ " कृत्वासौं जनकस्य चोत्तरविधि यातस्य दिव्यं पदं । राज्यं प्राज्यतमं विधाय विविधैर्भ यो बलैर्दु ग्रहम् ॥ श्राश्वास्य स्वजनानुपेत्य ग्रहिणी हृद्य प्रभारोहिणीं । बुद्ध्वा दोहदशालिनीं प्रमुदितो युद्धाय बुद्धि दधौ ||३२|| " तावत्तज्जन केरितेव जननी लोकाम्बिका व्यम्बका रोचीरोचित लोहितांचित समिद्रङ्गा शुतङ्गाभिमाम् । श्रविभू य तदङ्गसङ्गतिहितप्रक्षा समाहितं प्रोचे, काकिल! नाकिलम्भित पदा त्वां संपदा योजये ।। ७३६ ।। भूमीगूहित मम्बिकेश्वर मरं पातार मभ्यर्च्य ताँ धीतारमेतस्य च । भर्तारमाविष्कुरू क्रूराणामनवेक्षण क्षममथ स्वं दुर्गमारात् कुरू ।। ३७ ।। पावन्यां दिशि गालवाश्रम गिरेर्वन्यान्तराले गिरो वाराधार महावाभिघ सरो रोधौ महीगूहितम् । X दातारं च दुराय वस्तु वितते हर्त्तारं सुमहापदां त्रिजगतां सलिङ्ग मया च शर्मोदये ।। ३८ । गौरेकापयसामिबिञ्चति परं लिङ्ग यत्त वादि तदादिहेतुरहितध्वंसे उज्जीवद्वलसंयुतो व्रजगिरा प्रातर्ममेति स्फुटं विध्वस्तं कुटिल शयैरकुटिलं प्रोज्जीव्य चादिश्यताम् । सा तेन प्रणता यथा मतिनुता माता थ विश्वस्थतं । वाचाश्वास्य सुधारुचाँ सुचतुरं भक्तिप्रियान्तर्दधे ।। ३६ ।। X X For Private & Personal Use Only X www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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