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________________ २५८ ] भारतीय मूर्तिकला में त्रिविक्रम नागिन का चित्रण है । मस्तक के दोनों ओर ब्रह्मा, शिव तथा गजारूढ इन्द्र हैं । प्रतिमा के ऊपरी भाग में एक पंक्ति में सप्तऋषि विराजमान है ।२१ काशीपुर (उत्तरप्रदेश)से प्राप्त प्रतिहारकालीन त्रिविक्रम को मूर्तिकार ने शिल्परत्न के अनुसार दाहिने पैर से आकाश नापते चित्रित किया है। उनके हाथों में क्रमशः पद्म, गदा, और चक्र हैं। नीचे वाले बायें हाथ में, जो खण्डित हो गया है, सम्भवतः शंख ही था ।२२ त्रिविक्रम के ऊपर उठे पैर के नीचे का दृश्य दो भागों में बना है-प्रथम में मुकुटधारी राजा बलि२3 छत्रधारी वामन के दाहिने हाथ में कमण्डलु से जल गिरा रहे हैं । बलि के इस कार्य से असन्तुष्ट शुक्राचार्य वहीं मुह फेरे खड़े हैं। इनके शरीर पर धारण किया हुअा वस्त्रयज्ञोपवीत स्पष्ट है। दूसरे भाग में वामन के पीछे बलि को पाश से बांधे एक सेवक बना है ! मूर्ति पर्याप्त रूप से सुन्दर है (चित्र ५) ।२४ दीनाजपुर से प्राप्त विष्णु (त्रिविक्रम) की एक अन्य प्रतिमा मूर्तिकला की दृष्टि से विशेष महत्त्व की है। यहां वे सांप के सात फरणों के नीचे खड़े हैं तथा गदा व चक्र पूर्ण विकसित कमलों पर प्रदर्शित हैं । डा० जे० एन० बैनर्जी के विचार में यह विष्णु प्रतिमा महायानी प्रभाव से प्रभावित है,२५ क्योंकि इन आयुधों को कमल पर रखने का तरीका मञ्जुश्री और सिंहनाद लोकेश्वर की प्रतिमाओं की भांति है। ___ उपर्युक्त वरिणत घुसाईं, प्रोसियां, काशीपुर आदि स्थानों से प्राप्त प्रतिमाओं में त्रिविक्रम के ऊपर उठे पैर के ऊपर एक विचित्र मुखाकृति (grinning facs) मिलती है ! यह विद्वानों में काफी विवाद का विषय रहा है ! गोपीनाथ राव ने वराहपुराण को उधत करते समय विचार व्यक्त किया था कि जब त्रिविक्रम ने स्वर्ग नापने के लिए अपना पैर ऊपर उठाया तो उसके टकराने से ब्रह्माण्ड फट गया और उस टूटे ब्रह्माण्ड की दरारों से जल बहने लगा। यह मूख सम्भवतः ब्रह्माण्ड की उस अवस्था को दर्शाता है ।२६ कालान्तर में डा० स्टेल्ला क्रेमरिश,२७ डा० आर० डी० बेनर्जी, डा० जे० २१. ऐ० रि०, प्रा० स० प्रॉफ इन्डिया, १६२ । २२३, पृ. ८६ २२. 'पद्म कौमोदकी चक्र शंख धत्त त्रिविक्रमः ॥७॥ २३. इसके विपरीत बादामी की गुफा में इसी प्रकार के बने एक अन्य दृश्य में राजा बलि का वामन को दान देते समय शीश मुकुट रहित है। २४. राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली, नं० एल-१४३ २५. हिस्ट्री ऑफ बंगाल I, पृ० ४३३-४३४ २६. "That when the foot of Trivikrama was Lcifted to measure the heaven world, the Brahmanda burst and cosmte water began to pour down through the clefts of the broken Brahmanda, This face is perhaps meant to represent the Brahmanda in that condition," एलर्लामेन्ट्स प्राफ हिन्दु पाईक्नोग्रफी, I, i, पृ० १६७ २७. दो हिन्दु टेम्पिल, II, पृ० ४०३-४०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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