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________________ श्री वासुदेव शरण अग्रवाल २४६ ] मिलता था और जिनके द्वारा प्रासुरीशून्यता से उसकी रक्षा होती थी। गुप्तकालीन कला शिल्प, चित्र और स्थापत्य इस प्रकार के अलंकरणों से बहुत भरी हुई है। कुषाण काल की कला ईहामृग या विकृताकृति पशुओं से भरी हुई है क्योंकि इस प्रकार के ऐठे गेंठे शरीर वाले पशुत्रों में शकों को स्वयं बहुत रुची थी। सांस्कृतिक जीवन भारतीय कला की एक विशेषता उसमें अंकित सांस्कृतिक जीवन की सामग्री है। राजा और दोनों के जीवन का ही खुल कर चित्रण किया गया है। कला मानो साहित्यिक वर्णनों की व्याख्या प्रस्तुत करती है । कोई चाहे तो कला की सामग्री से ही भारतीय जीवन और रहन-सहन का इतिहास लिख सकता है। भारतीय वेश-भूषा, केश विन्यास, आभूषण, शयनासन, आदि की सामग्री चित्र शिल्प आदि में मिलती है। छोटी मिट्टी की मूर्तियां भी इस विषय में सहायक हैं। उनमें तो सामान्य जनता को भी स्थान मिला है। भरहूत, सांची, अमरावती नागार्जुनी कुडा आदि के महान स्तूपों पर मानों जनता के जीवन की शत साहस्त्री संहिता ही मानो लिखी हई है। भारतीय कला सदा जीवन को साथ ले कर चली है । अतएव उसमें सम सामयिक जन जीवन का प्रतिबिम्ब पाया जाता है। धार्मिक जीवन देश में समय-समय पर जो महान् धार्मिक आंदोलन हए हैं और जिन्होंने लोक जीवन पर गहरा प्रभाव डाला है उनसे भी कला को प्रेरणा मिली और उनकी कथा कला के मूर्त रूपों में सुरक्षित हुई है । उस विषय में कला की सामग्री कहीं तो साहित्य से भी अधिक सहायक है। यक्षों और नागों का बहुत अच्छा परिचय भरहुत, सांची और मथुरा की कला में मिलता है। इसी प्रकार उत्तर कुरु के विषय में जो लोक विश्वास था उसका भी उत्साहपूर्ण अंकन भाजा, भरहुत, सांची आदि में हुआ है। मिथुन, कल्पवृक्ष, कल्पलता आदि अलंकरण उसी से सम्बन्धित है जिनका वर्णन जातक, रामायण, महाभारत आदि में पाया है। दुकूल वस्त्र, पनसाकृति पात्रों में भरा हया उत्तम मधू, आम्राकृति पात्रों में भरा हुआ लाक्षा रस, सिर, कान, ग्रीवा, बाहु और पैरों के आभूषण एवं, स्त्री पुरुषों की मिथुक मूर्तियां-सबका जन्म कल्प वृक्ष और कल्प लताओं से दिखाया गया है। वस्तुतः प्रत्येक व्यक्ति का समस्त जीवन ही एक कल्प वृक्ष है जिसकी छाया में वह अपनी इच्छा के अनुसार फूलता फलता है। प्रत्येक का मन ही महान कल्प वृक्ष है, कल्पना या संकल्प जिसका सुन्दर रस है । कला के प्रतीकात्मक विषय भारतीय कला के जो वर्ण्य विषय हैं वस्तूतः उनका महत्व सबसे अधिक है। उनमें भारतीय जीवन और विचारों की व्याख्या ही मिलती है। भारतीय जीवन की पूरी छाप कला पर पड़ी है । इसकी एक विशेषता तो यह थी कि सामान्य जनता के धार्मिक विश्वास कला में बुद्ध, महावीर, शिव और विष्णु के उच्चतर धर्मों के साथ मिलकर परिग्रहीत हुए हैं। कोई भी धर्म जनता के विश्वासों से इतना ऊपर नहीं उठ गया कि उनमें आकाश पाताल का अन्तर हो जाय और वे एक दूसरे से अलग जा पड़े। भारतीय धर्म की पूरी बारहखड़ी में एक और बुद्ध, रुद्रशिव या नारायण विष्णु का तत्वज्ञान भी है और दूसरी और उन अनेक देवताओं की पूजा मान्यता भी है जो माताभूमि से सम्बन्धित थे और भय, व्रत या यात्रा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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