SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ना ना छ) २३६ ] स्वयंभू कृत : रिट्ठणेमि चरिउ 'मांथी पच्चीश देश्य शब्दो (संदर्भ शांबे कुडिनपुर मां पोतानी माया थी सजैली परेशानी नो छे) १०. थुकिय 'रोष थी मों चडी जवु' दे. ना. ५, २१ मां थोडाक रोष थी मुख संकोचाइ जव। अवा अर्थमा नोंधायो छ । नीचेनी पंक्ति मां थयेलो तेनो प्रयोग या अर्थनु तेमज जोडणीनु समर्थन करे छ : महराहिउ तहि काले थड किउ (५-११-४) 'ते वेला मथरापति कंसनु मों चडी गयु' ११. दुवालि 'तोफान, अटकचाला, प्राडाई, अलवीतराई' । प्राहि दुवालिहिं मत्त तुहं दिढ बंदरणरू जिह मत्तगउ (१-११-४५) 'आवां अटकचालांने कारणे तु मातेला हाथीनी जेम दृढ बंधन पाम्यो छे' । तिहि मि दुवालि अविरणु न पवत्तइ (५-११-६) 'त्यां (दूर वनमा) पण (कृष्ण) अटकचाला करयां बिना रहेता नथी' । पट्टरिण प्रेम करंतु दुवालिउ (११-५-७) 'ग्रे प्रमाणे नगर मां तोफानो करतो' (प्रद्य म्नकुमार पुष्पदंतना महापुराण मां पण या अर्थ मां शब्द वपरायो छे जुप्रो (८५-१०-६, ८५-२४-१४, ८५-१३-३.८८-४-७: छेल्ला स्थान उपरना टिप्पण मा तेनो 'पालीगारपण' अवो जूनी गुजराती मां अर्थ प्रापेलो छ । 'अलगारीपरणा' नो प्रा मूल अर्थ छ । 'ग्रालि' करवी ग्रेटले 'मस्ती तोफान' करवा, 'दु+प्रालि' = 'दुवालि' । भरतेश्वर बाहुबलि रासमां 'आलि करइ अपार तु' ग्रेम आवे छे। पृथ्वीचंद्र चरित मां हाथीनी मस्ती माटे ते वपरायो छे 'महापुराण' मा ८५-२४-१४ उपर ना टिप्पण मां तेनों अर्थ 'गुलाई' प्राप्यो छे ते ‘गोलापरणु' 'लुच्याई' अटले के 'अलवीतराइ' होवानु समझाय छ । १२. पइद्ध 'अत्यंत आसक्त' वुच्यइ वम्महेण कुलजाइ विसुद्धी गरवइ तुम्ह सुय चंडाल पइद्धी (१३-७-धत्ता) 'मन्मथे (=प्रद्य म्ने कह्य, "हे राजा, विशुद्ध कुल अने जाति वाली तारी पुत्री चंडाल ने हली गई छे")। सं० 'प्रगृद्ध' उपरथी ने थयो छ । गुजराती 'पेधव' ना मूलमा अाज शब्द के अर्थ बदलायो छ । १३. पलक्क 'लंपट' कावि गोवि रस संग पलक्की (५-१०.७) 'कोइक गोपी रस लंपट बनी गई'। 'प्राकृतकोशे' 'कुमारपाल प्रतिबोध' मांथी 'विसयपलक्कयो' नोंध्युछे, अने धाहिल कृत पउमसिरिचरिउ' मा भष्ट चरित्र नारी ने 'पलक्किया' कही छे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy