SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निमाड़ी भाषा और उसका क्षेत्र विस्तार १७५ नाम 'निमानी' और उससे बदल कर 'निमारी' और 'निमाड़ी' हो गया होगा। पहले की अपेक्षा यह दूसरा कारण प्रामाणिक व उचित भी प्रतीत होता है । प्राचीन इतिहास : प्राचीन इतिहास की खोज करने से पता चलता है कि सुदूर रामायण काल में (ई० पूर्व १६०० के)१ यहां पर 'माहिष्मती' (आधुनिक महेश्वर) को राजधानी के रूप में लेकर एक सशक्त राज्य स्थापित था। महेश्वर को हैहयवंशी राजा सहस्त्रार्जुन एवं चेदीवंशी के राजा शिशुपाल की राजधानी होने का गौरव प्राप्त था । वाल्मीकि रामायण में हैहयवंशीय सहस्त्रार्जुन को 'अर्जुनों जयन्ता श्रेष्ठो माहिष्मत्या पति प्रभो' अर्थात माहिष्मती नगरी का राजा महा विजयी अर्जुन ऐसा लिखा है२ जिस रावण ने कुबेर, यम और वरुण को भी जीत लिया था उसे सहस्त्रार्जुन ने महेश्वर में पराजित किया था। कुछ लोगों ने आधुनिक मान्धाता को माहिष्मती दर्शाया है। लेकिन यह सर्वथा निराधार है। सहस्त्रार्जुन ने जहां अपने सहस्त्रों हाथों से नर्मदा को रोका था और जहां से नर्मदा का जल सहस्त्रों हाथों में से होकर बहा था, वह स्थान आज भी महेश्वर में सहस्त्रज्ञधारा के नाम से प्रसिद्ध है। वाल्मीकि रामायण में भी सहस्त्रधारा के निकट ही, सहस्त्रार्जुन और रामायण में युद्ध होना पाया जाता है।। श्री शांतिकुमार नानुराम व्यास ने भी श्री नन्दलाल दे की (जाग्रफीकल डिक्शनरी आफ एनसिएट एण्ड मिडिवल इण्डिया ) के आधार पर इंदौर से ४० मील दूर दक्षिण में नर्मदा तट स्थित महेश्वर को ही माहिष्मती दर्शाया है। कहते हैं हवा वंश के राजा मांधाता के तीसरे पुत्र मुचकुंद ने महेश्वर को बसाया था। उसने पारिमात्र और ऋक्षपर्वतों के बीच नर्वदा किनारे एक नगर बसाया था और उसे दुर्ग के समान चारों ओर से सुरक्षित किया था। वही आधुनिक महेश्वर है। बाद में हैहयवंशीय राजा माहिष्मत ने उसे जीत कर उसका नाम 'माहिष्मती' रखा । पश्चात् सहस्त्रार्जुन ने कर्कोटक नागों से युद्ध कर अनूप देश पर कब्जा कर लिया था और माहिष्मती को अपनी राजधानी बनाया था । प्राचीन राज व्यवस्था का जिक्र करते हुये श्री बालचन्द्र जैन ने लिखा है, 'उस काल में मध्य प्रदेश का बहुत सा हिस्सा 'दण्डकारण्य' कहलाता था। उसके पूर्वी भाग में कौशल, दक्षिण कौशल या महाकौशल का राज्य स्थित था जिसे अब छत्तीसगढ़ कहते हैं। उत्तरीय जिले 'महिष-मण्डल' और 'डाहल-मण्डल' में विभाजित थे। महिषमण्डल की राजधानी निमाड़ में 'माहिष्मती' में थी और 'डाहल-मण्डल' की राजधानी जबलपुर के निकट 'त्रिपुरी' में । १-पुराण विशेषज्ञ-पाजिटर-संस्कृत और उसका साहित्य २--बाल्मीकि रामायण (उत्तर काण्ड-सर्ग २२ श्लोक २) ३--श्री शांतिकुमार नानुराम व्यास (रामायण कालीन समाज) पृष्ठ ३१० । ४--श्री बालचन्द्र जैन (शुक्ल अभिनन्दन ग्रन्थ) इतिहास पुरातत्व खण्ड पृष्ठ ६ ५--श्री बालचन्द्र जैन (शुक्ल अभिनन्दन ग्रन्थ पृष्ठ ६) ६--श्री बालचन्द्र जैन (शुक्ल अभिनन्दन ग्रन्थ) पृष्ठ ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy