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________________ १. ] जवाहिरलाल जन भारत-जर्मन मित्रता बढ़ाने और दृढ़ करने की दृष्टि से एक राष्ट्रीय भावना-युक्त मुस्लिम मित्र की सहायता . से हिन्दुस्तान हाउस के नाम से एक संस्थान की स्थापना की। __ मुनिजी को लगा कि जर्मनी में गांधीजी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर तथा भारत के बारे में जानने की तीव्र जिज्ञासा है, इसकी पूर्ति के लिए विचार-विनिमय का एक केन्द्र आवश्यक है । दूसरी बात यह अनुभव में आई कि जर्मनी में भारतीय काफी संख्या में रहते हैं तथा आते-जाते हैं, इनके आपस में मिलने और ठहरने का भी कोई स्थान नहीं है। तीसरी बात यह कि इस सारे विचार-विनिमय और संपर्क में भोजनालय का महत्वपूर्ण स्थान है जिसमें निरामिष भोजन की भी व्यवस्था हो। इन तीनों कमियों की पूर्ति की दृष्टि से २४ अगस्त १९२८ को इस हाउस का उद्घाटन श्री शिवप्रसाद गुप्त के हाथों हुया । हिन्दुस्थान हाउस बलिन में भारतजर्मन संपर्क और सुविधा का उत्तम केन्द्र बना और मुनिजी के भारत आ जाने के बाद भी भारत के अनेक गण्य-मान्य नेता, विद्यार्थी, व्यापारी आदि उससे लाभान्वित होते रहे। पिछले महायुद्ध के अवसर पर नेताजी सुभाषचन्द्र बोस भी कुछ समय वहाँ रहे थे। मुनिजी १६२६ के दिसम्बर मास में जर्मनी से वापिस लौटे और लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन में शामिल हुये। लाहौर-कांग्रेस के द्वारा पूर्ण स्वाधीनता का प्रस्ताव स्वीकार किया गया । मुनिजी गांधी जी से मिले और उन्होंने पुनः जर्मनी जाने का अपना इरादा प्रकट किया तो महात्मा जी ने कहा- अब हमें देश में ही तुम्हारे जैसे लोगों की अत्यंत आवश्यकता है । मैं तुम्हें विदेश जाने की कैसे सलाह दे सकता हूँ ? फलतः मुनि जी का जर्मनी जाने का विचार समाप्त हो गया । कलकत्ते के प्रमुख जैन साहित्यानुरागी श्री बहादुर सिंह सिंघी के निमंत्रण पर मुनिजी १६३० में कलकत्ते गये और वहाँ से वे शांति निकेतन गये और अपने चिर-परिचित मित्र श्री क्षिति मोहन से वहीं मिले । गुरुदेव उस समय बाहर गये हुये थे। शांति निकेतन को देखकर मुनिजी का हृदय हर्षित हुआ और यह भाव उठा कि इस तपोवन में ४-६ महीने रहकर जीवन में समृद्धि एवं मूल्यवान् स्मृतियों की वृद्धि प्राप्त करनी चाहिये । शांति निकेतन से लौटने पर श्री सिंघी ने उनसे कहा कि वे अपने पूज्य पिता की स्मृति में ज्ञान-प्रसार एवं साहित्य प्रकाशन का कोई सुधार-कार्य करने की सोच रहे हैं । विशद चर्चा और विचारविनिमय के पश्चात् शांति निकेतन में सिंघी जैन ज्ञानपीठ की स्थापना की योजना बनी और मुनिजी ने अपनी सेवाएं इस कार्य के लिए अर्पित करना स्वीकार किया। इसी बीच १२ मार्च को गांधी जी ने नमक सत्याग्रह के लिए 'दांडी कूच' का प्रारंभ कर दिया । इससे स्वाभाविक रूप से ही गुजरात में बड़ी हलचल मची। धरासना का सरकारी नमक डिपो सत्याग्रहियों के कार्य का मुख्य क्षेत्र बना । मुनिजी भी ७५ स्वयं सेवकों की बड़ी टोली के साथ धरासना के लिए अहमदाबाद से रवाना हुए, पर गाड़ी रवाना होने के १५-२० मिनट बाद ही एक छोटे स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिये गये और वक्तव्य लेकर तुरंत ही उन्हें ६ मास के सपरिश्रम कारावास की सजा दे दी गई। उन्हें 'ए' क्लास दिया गया। उसी रात वे लोग बम्बई में 'वरली चाल' की काम-चलाऊ जेल में लाये गये और कुछ दिन वहाँ रखकर उन्हें नासिक जेल में भेज दिया गया। वहाँ श्री जमनालाल बजाज, श्री नरीमान, डा० चौकसी, श्री रणछोड़ भाई सेठ, श्री मुकुद मालवीय आदि भी साथ में थे। __ नासिक जेल में ही मुनिजी का परिचय श्री कन्हैयालाल माणिक्य लाल मुशी से हुआ जो धीरे २ उन्मुक्त सौहार्द में विकसित होता गया । सं० १९८६ की विजया दशमी को वे जेल से छूटे । श्री जमना लाल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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