SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ श्रीउदयसिंह भटनागर कथा-कहानियों में भीलों का बराबर उल्लेख आता है। ऋषभ और अनत इजिप्टोफिनिशियन देवता Rechuf और Anat से साम्य रखते हैं, जो भीलों के साथ ही पाये । अन्नदेवता दगोन् (Dagon) <दगन (dagan) इन्हीं की भाषा का शब्द था जो दगोन्,>गोदन गोजन, गोजू, गोधूम् तथा दगन्, दहन, धान आदि रूपों में विकसित हया। बस्तियों के द्योतक शब्द वीड़, वाड़ आदि समाज और शासन व्यवस्था सबंधी शब्द पाल, पल्ल, पल्लवी२६ बिल धनुष बेल (Lबे-एल्व=भाला), बाल (2बाल्व-तलवार) आदि शब्द भीलों की प्राचीन सभ्यता के द्योतक हैं और द्रविड़ भील मिश्रण की ओर संकेत करते हैं। 'मिलयन' और 'मलयालम्' में जो साम्य है वह उस ओर इन्हीं की शाखा के जाने का संकेत है। 'द्रमिल' और 'मिल' के भारत में आने पर उनका इस 'मिल' (मिलयन) जाति के साथ सम्पर्क और मिश्रण हुआ। मिश्रण का यह समय धातु युग था, जब 'मिल' लोग 'लकुल' की देवता के रूप में पूर्ण प्रतिष्ठा कर उसकी पाषाण मूत्ति स्थापित कर चुके थे और धनुषबाण तथा भाले और कृपाण का प्रयोग करने लगे थे। इनके सम्पर्क और मिश्रण के बाद 'मिल' शब्द का रूपान्तर 'बिल' हो गया, जिसका प्रयोग द्रमिलत्रमिल > द्रविड़-तमिज इन धनुर्धारियों के लिये करते थे। दक्षिण में जम जाने के बाद तमिल भाषा में इस 'बिल' शब्द का प्रयोग 'धनुष' के अर्थ में रूढ हो गया२७ । 'बिल' की भांति ही ये लोग 'पल्ली', 'वीडु' आदि अनेक भीली शब्द अपने पाप ले गये, जिनका प्रयोग आज तक सभी द्रविड़ भाषाओं में किसी न किसी रूप में होता है, और जो इस सम्पर्क और सम्बन्ध के द्योतक हैं । 'बिल' शब्द की 'ब्' ध्वनि में महाप्राणत्व होकर 'म्' होना पार्य-भाषा सम्पर्क का परिणाम है। इसी प्रकार 'ल' में द्वित्व होकर 'ल्ल' होना प्राकृत काल में द्रविड़-उच्चारण के प्रभाव का परिणाम है । इस प्रकार 'मिल' से बिल' और फिर 'भिल्ल' और अाधुनिक 'भील' हुआ । द्रविड़ और आर्य ध्वनि-संहति में एक अन्तर यह है कि आर्य भाषाओं में जहां महाप्राण ध्वनियां होती हैं वहां तमिल में अल्पप्राण का ही प्रयोग होता है, क्योंकि उसमें महाप्राण ध्वनियों का सर्वथा अभाव है । प्रारम्भिक सम्पर्क में 'ब' का आर्य 'भ' होने का यही कारण था । द्रविड़-भील सम्पर्क और मिश्रण की मोर संकेत करने वाली अन्य प्रवृत्तियों में मूर्धन्य ध्वनियां ट, ठ, ड, (ड), ढ़ (ढ), ण और ल हैं जो दोनों में समान रूप से और अनेक शब्दों में थोड़े से ध्वनि परिवर्तन से शब्द का मूल या समान अर्थ निकल आता है । आज भी दोनों भाषाओं में ऐसे उदाहरण मिलेंगे। 'ल' और मूर्धन्य 'ल', 'ड्' और 'ड, ध्वनियां दोनों में ही समान रूप से मिलती हैं । कहीं कहीं मूर्धन्य 'ल' का उच्चारण 'ड' के समान होता हुआ 'र' में परिवर्तित हो जाता है। प्राचीन तमिल 'झ' का उच्चारण "Zh' जैसा होता था। भीली तथा उससे प्रभावित युक्त राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र प्रदेशों में आज भी यह उच्चारण वर्तमान है । भीली और तमिल च वर्गीय ध्वनियां भी इस सम्पर्क और मिश्रण के उदाहरण हैं। उच्चारण सम्बन्धी एक प्रमुख प्रवृत्ति शब्द को उका २६--तोलेमी (Ptalemy vii, I, 66) ने पल्लवी को फुल्लितइ (quvvstas) लिखा है, जिससे कुछ विद्वानों इसका अर्थ 'पत्ते पहनने वाले (leafwearer, सं० पल्लव =पत्ता) अर्थ किया है, जो अशुद्ध है । यह शब्द पल्लिवइ । पल्लिपति से सम्बन्ध रखता है। 27) "Bhils-Bowmeu' from Dravidian bil, a bow." Encyclopaedia Brittanica Vol II Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy