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________________ १४८ उदयसिंह भटनागर सभ्यता और संस्कृति की दृष्टि से मार्य जाति का जैसा प्रभाव इस देश पर पड़ा वैसा बाहर से आने वाली किसी भी जाति का न पड़ा । पार्यों में समन्वय की जो महान शक्ति थी वह प्रत्येक परिस्थिति में प्रबल और सक्रिय बनी रही। सम्भवतः उक्त भीलों अथवा उनके प्रादि पुरुषों की जो भी भाषा रही होगी उसका समन्वय धीरे धीरे आर्य भाषा में हो गया। इसमें सन्देह नहीं कि आर्य जाति और उसकी संस्कृति तथा भाषा में एक ऐसी शक्ति रही कि जिन जिन जातियों ने इस देश में प्रवेश किया तथायहाँ आकर जम गई उनकी संस्कृति और भाषा को अपनी संस्कृति और भाषा में मिला कर एक कर लिया। भाषा इस समन्वय का प्रथम और प्रधान साधन रहा है। यही कारण है कि भौगोलिक दृष्टि से एकता रखने वाले इस देश की अनेकता में भी एकता बराबर बनी रही है। पार्यों की भावनात्मक और विचारात्मक स्तर उच्च कोटि का होने के कारण आर्य सभ्यता और संस्कृति का प्रभाव यहाँ की अन्य जातियों पर पड़ने के कारण इस एकात्मकता का विकास हुअा और उसकी अभिव्यक्ति भी उमी के अनुकूल भाषा में हुई। भारतीय आर्य सभ्यता और संस्कृति के भीतर यहाँ के आदि वासियों अथवा बाहर से आने वाली प्राचीनतम जातियों के विकसित युग की सभ्यता और संस्कृति के अवशेष वर्तमान हैं । इन्हीं के सम्मिश्रण से भारतीय सभ्यता और संस्कृति का निर्माण हुआ। भील जातियों में जो धार्मिक प्रथाएँ वर्तमान हैं वे हिन्दू संस्कृति की द्योतक होते हए भी पायों की वैदिक रीतियों के अनुकूल नहीं है। प्राग्नेय जाति के पश्चात् जो जातियाँ भारत में आई वे एक दूसरी से अधिक विकसित, सभ्य और सबल थी और ये लोग अपने साथ जो भी भाषा लाये उसकी अभिव्यक्ति की प्रवृत्तियाँ, ध्वनि और रूप आदि का मिश्रण यहाँ की भाषा के साथ हुमा । मध्य और पूर्वी राजस्थान पर पहले भीलों का प्रभाव था। पीछे से आने वाली जातियों ने इन्हें जंगल की ओर खदेड़ दिया । जिससे ये सिकुड कर अलि और अन्य पर्वत मालाओं की उपत्यकामों में सीमित हो गये। ये लोग उत्तर प्रस्तर काल (Neolithic slage) में भारत में विकसित हुए और ताँबे और लोहे का प्रयोग प्रारम्भ किया खेती करने का ढंग इनमें पादिम प्रकार का था। भूमि खोदने के लिये जब ये लोग लकड़ी का प्रयोग करते २. सात मनुष्य महादेव के पास गये । पार्वती ने महादेव से कहा कि ये मेरे भाई हैं। मेरा आपके साथ विवाह होने के उपलक्ष में ये आपसे 'दहेज-दापा' लेने आये हैं। महादेव ने उनको भोजन कराया और अपना नान्दी तथा कमण्डल दे दिया। जाते समय उन्होंने उनके मार्ग में कुछ और देने के लिये एक चाँदी पाट भी बिछा दिया, पर उस पर उनकी दृष्टि नहीं पड़ी। पार्वती ने कहा कि तुम अवसर चूक गये, नहीं तो तुम्हारा भाग्य खुल जाता। फिर भी नान्दी का ध्यान रखना । उसकी कूबड़ में धन का भण्डार है। पार्वती का संकेत नान्दी से हल हाँक कर पृथ्वी से धन-धान्य उत्पन्न करने की अोर था, पर वे न समझ सके । उनमें से एक ने नान्दी को मार डाला। पार्वती ने क्रुद्ध होकर शाप दिया, जिससे वे भील हुए । ३. तीसरी कथा पौराणिक है। मनु स्वयंभू वंशज अंग का पुत्र वेण निःसन्तान था । अतः ऋषियों ने उसकी जाँघ को रगड़ कर एक पुत्र उत्पन्न किया जो जले हुए लकड़ी के डींगे के समान काला था। उसका कद बौना और नाक चपटा था। उसको बैठने के लिये 'निषाद' कहा गया। वह बैठ गया और 'निषाद' कहलाया। इसी के वंशज निषाद कहलाये जो विन्ध्य पर्वत में रहते हैं। रामायण, महाभारत, हरिवंशपुराण आदि में भी इसी प्रकार की कथाए मिलती हैं । -L. Jung Blunt: 'A short Bhili Grammar of Jhabua State and adjoining territories.' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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