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________________ जैन आगम-प्रौपपातिक सूत्र का सांस्कृतिक अध्ययन १२७ “से जे इमे जाब सन्निवेसेसु परिवाया भवंति तं जहा ईखा जोगी काविला भिउव्वा हंसा परमहंसा बहुउदगा कुडिव्वया कण्हपरि व्वायया । तत्थ खलु इमे अट्र माहण परिव्वायया भवति । तंजहा-- ब्राह्मरणपरिव्राजक कण्णे' य करकण्टे य अंबडे3 य परासरे४ । कण्हे ५ दीवायणे६ चेव देवगुत्ते" य नारए ॥१॥ क्षत्रिय परिव्राजक तत्थ खलु इमे अट्ठ खत्तिय-परि-वायया भवंति तं जहा-- सीलई' ससिहारे२ (य) नग्गई भग्गई ति य । विदेहे' राया रायारामे° बले ति य ॥ ते णं परिव्वायया रिउवेद यजुब्वेद सामवेय अहव्वणवेय इतिहासपंचमाणं, णिघण्टु छट्ठाणं संगोवं गाणं, सरहस्साणं चउण्हं वेयाणं सारगा पारगा धारणा वोरगा सउगवी सद्वितंतविसारया, संखाणे सिक्खाकप्पे वागरण छंदे निरूत्ते, जोइसामयणे अण्णेसु य (वहूसु) बंभण्रण एसु य सत्थेसु सुपरिणिट्ठिया यावि होत्था। परिव्राजकों को क्या क्या नहीं करना चाहिये इसका विवरण देते हुए ४ कथाओं व धातु पात्रों एवं अाभूपरणों का विवरण इस प्रकार दिया है "तेसि परिव्वायाणं पणो कूप्पइ- इथिकहा इवा भत्त कहाइवा देस कहाइवा, राय कहाइवा, चोरकहाइ वा जगवयकहाइवा, अणत्थदंड करित्तए। "तेसि रणं परिव्वायगाणं णो कप्पइ अयपायाणि वा सीसग पायाणि वा रूप्पपायारिणवा सुवण्णपायाणि वा अण्णयराणि वा बहमूल्लाणि धारित्तए, रणएणत्थ लाउपाएण वा दारूपाएण वा मट्ठियापाएण वा। तेसि णं परिव्वायगाणं णो कप्पइ अय बंधणाणि वा तउ अपबंधणाणि वा तव बंधणाणि वा जाव बहुमुल्लाणि धारित्तए । तेसि रणं परिव्वायगाणं णो कप्पइ णाणविहवण्णरागरत्ताइ वत्थाई धारितए णण्णात्थ एगाए धाउरत्ताए । तेसि शं परिवायगारणं णो कप्पइ हारं वा अद्धहारं वा एगावलि वा मुत्तावलि वा करणगावलि वा रयणावलि वा मुरवि वा कंठमुरविं वा पालंबं वा तिसरयं वा कडिसुत्त वा दसमुद्धि प्राण तगं वा कडयारिण वा मंगयाणि वा केऊराणि वा कुंडलारिण वा मउडं वा चूलामरिण वा पिणद्धित्तए ......, अंत में भगवान महावीर का जो वर्णन इस सूत्र में दिया गया है उपसे उद्धृत किया जाता है। इससे भगवान महावीर की विशेषताओं की सांस्कृतिक झलक बहुत अच्छे रूप में मिल जाती है। ___ "अरहा जिणे केवली सत्त हत्थुस्से हे समचउरंस संठाण संठिए वज्ज रिसहनारायसंघयणे अणुलोमवाउवेगे कंकग्गहणी कवोयपरिणामे सउरिणमोपपिठूतरोरूपरिणए पउमुप्पलगधसरिस निस्साससुरभिवयणे छवी निरायंक उत्तमपसत्थ अइसेयनिरूवमपले जलमल कलंक सेयरयदोस विज्जयसरीर निरूबलेवे छाया उज्जोइयंगभंगे धरणमिचियसुबद्धलक्खाण्णयकूड़ागार निभपिडियग्गसिरए सामलिबोडधण निचियच्छोड़ियमिउ विसयपसत्थ सुहुमलक्खण सुगंधसुन्दर भुयमोयग भिगनेलकज्जल पहिट भमर गणणिद्ध निकुरूबनिचियकुचिय पयाहिणा वत्तमुद्धसिरए दालिम पुप्फप्पगा सतवणिज्जसरिस निम्मलसुणिद्ध के संतके सभूमी धरण (निचिय) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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