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________________ १२४ श्री अगरचन्द नाहटा भारत की कन्नड़ व तामिल में भी जन विद्वानों के प्रचुर ग्रन्थ हैं। गुजराती, राजस्थानी में जैन साहित्य सर्वाधिक है ही, पर हिन्दी में भी कम नहीं है । थोड़ा बहुत मराठी, सिंधी, पंजाबी व बंगला भाषा में भी है। जैन यति-मुनि धर्म प्रचारार्थ भारत के प्रायः सभी प्रदेशों में घूमते रहें हैं इसलिए उनकी रचनाओं में अनेक प्रान्तों की बोली व शब्दों का समावेश मिलता है। लोक-भाषाओं की भांति लोकगीत एवं कथानों आदि को भी जैन विद्वानों ने खूब अपनाया। आगम साहित्य से लेकर नियुक्ति, भाष्य चूणि, टीका एवं कथा तथा प्रौपदेशिक ग्रन्थों एवं प्रबन्धसंग्रह आदि में सैकड़ों लोककथायें मिलती हैं। इसी प्रकार विविध काव्य रूपों एवं शैलियों को भी जिस समय जो जहां प्रचलित रही है, प्रायः उन सभी को जैन विद्वानों ने अपनी रचनाओं में समाविष्ट किया। इसीलिये राजस्थानी, गुजराती, हिन्दी के शताधिक 'रचना प्रकार' जैन रचनाओं में देखने को मिलते हैं। जब साधारण जनता का झकाव लोक संगीत की ओर अधिक देखा तो उन्होंने प्रसिद्ध एवं प्रचलित लोक गीतों की तर्ज व शैली में अपनी रास, चौपाई आदि को ढालें बनानी प्रारम्भ की। इससे हजारों लोकगीतों के स्वर एवं प्रारम्भिक पंक्तियां सुरक्षित रह सकी और प्रचुर लोककथाए जीवित रह सकीं। _ इतने प्रासंगिक निवेदन के पश्चात् में लेख के मूल विषय पर आता हूँ । प्राचीन जैन आगमों में कितने विपुल परिमाण में सांस्कृतिक सामग्री सुरक्षित है इसकी ठीक से जानकारी तो उन ग्रन्थों के अध्ययन से ही प्राप्त की जा सकती है। यहां तो उनके सांस्कृतिक अध्ययन की प्रेरणा देने के लिये सामान्य दिशानिर्देश ही किया जाता है। प्रथम अंग सूत्र-आचारांग में यद्यपि प्रधानतया जैन मुनियों के प्राचार का ही निरूपण है पर अंत में भगवान् महावीर की चर्या का जो निरुपण है वह सांस्कृतिक दृष्टि से बड़ा महत्वपूर्ण है। इसी प्रकार सूत्रकृतांग में भगवान् महावीर के समय के मत मतान्तरों--क्रियावादी प्रक्रियावादी आदि ३६३ पाखंड़ों का उल्लेख महत्व का है । तीसरा चौथा अंगसूत्र-स्थानांग व समवायांग संख्याक्रम से लिखा हुआ पदार्थ-कोष है । इसमें भौगोलिक, ज्योतिष, वैद्यक, संगीत, बहत्तर कलाएं एवं उस समय के राजादि, तीर्थङ्कर, चक्रवर्ती, लदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेव के जीवनी के सूत्र तथा व्याकरण प्रादि विषयों का निरुपण साहित्यिक, ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक सभी दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। भगवान् महावीर के समय के पाठ राजाओं के नाम उस समय के इतिहास की दृष्टि से महत्व के हैं। पांचवां भगवती सूत्र भी ज्ञान विज्ञान का भंडार है । इसमें गोशालक, भगवान महावीर के समय के एक बड़े युद्ध, उस समय के पार्श्वनाथ संतानीय व तापसों तथा उदयन राजा, भगवान् महावीर, जमाली आदि अनेक ऐतिहासिक व्यक्तियों के नाम व चरित्र होने के साथ साथ राजगृह के गर्म व ठंडे पानी के कुण्ड, परमारण-पूदगल शक्ति प्रादि अनेक वैज्ञानिक विषय भी प्रश्नोत्तर रूप में वर्णित है। छठे सूत्र-ज्ञाता धर्म कथाएं उगणीसवें तीर्थकर मल्लिनाथ और पांच पाण्डव पत्नी-द्रौपदी का जीवन चरित्र उल्लेखनीय है । वैसे इसमें बहुत सी दृष्टांत कथाए लोक प्रचलित रहीं होंगी। पर वे हैं बड़ी १--थोड़ा विवरण डा. जगदीशचंद्र जैन के शोध प्रबन्ध में दिया गया है। २–डा. जगदीशचन्द्र जैन की 'अढाई हजार वर्ष पुरानी कहानियां' पुस्तक जो भारतीय ज्ञानपीठ, बनारस से प्रकाशित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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