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________________ ८० (ii) कोण माइ में रोगि राजन बोलें सामि मारे सुड़िलो सिरावो कोंण भाइ घेरे वरघोड़ (iv) X यह लग्न गीत है । इसमें भाषा का स्वरूप और गुजराती की छाँट दृष्टव्य है । बालक लाडि तो लक्य कागद मोकले प्रोजि अलदि ना भेज्या वेला आवोरे ! X X यह गीत भी ऊपर की कोटि का ही है। (iii) समदरिया ने धणे पेले पारे भनोजि तम्बू साणिया लाडि तारा बापा ने जुगाड़ नावे नकाब सें. नति मारा बापाज़ि घर पोसे प्रापे पदारजु समदरिया ने श्रणे पेले पारे भनोजि तम्बु ताणिया लाडि तारा विरा ने जुगाड़ नावे नकाव सें नति मारा विराजि घर पोसे प्रापे पदारजु श्रोजि यो केम भावु बालक लाडलि राज ने विरेजिये मारग रोक्योरे ! Jain Education International X X आवि रे सावला नि जान रे जरमरिया जाला' घे रे वेवाइ तारु घोर रे धोर धेरि ने नासेंरग हाइ रे "1 }} वि ने करण भाइ ने पोगे पड़यो रे सोड़ो रे बावसि मारँ बाँण रे रुपिया घालु भारोमार रे मारे नति रुपियँ नँ काम रे मारे से बेरियँ नँ काम रे इतो धरज करों रे ना विरोजि प्रोजि गड़ि दोय मारग सोड़ो रे ! X " 71 " X " 13 " 77 31 37 13 "" प्रो० डॉ. एल डी. जोशी "1 X X For Private & Personal Use Only -माले गजरो सिवदो" -मार्केण गजरो सिवदो - मालेग गज़रो सिवदो X X X ******** www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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