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________________ बागड़ के लोक साहित्य की एक झांखी हमारे देश में तीन बागड़ प्रदेश सुने जाते हैं—पहला गुजरात प्रदेश में कच्छ-गुजरात की सरहदों के बीचका, दूसरा राजस्थान में नरभड़ (नरहड़) आदि पिलानी से हांसी-हिंसार तक का, और तीसरा मेवाड-मालवा-गजरात की सरहदों के बीच का प्रदेश। हमारा बागड़ यह तीसरा प्रदेश है जो दक्षिण-पूर्वी राजस्थान के डूंगरपुर और बांसवाड़ा के जिलों तथा उनके आसपास के विस्तार का क्षेत्र है। यह विभाग २३० १५' से २४० १' उत्तर अक्षांस एवम् ७३० १५' से ७४० २४' पूर्व देशांतर के बीच स्थित है। इसका क्षेत्रफल करीब ५,००० वर्गमील तथा इसकी आबादी लगभग १२ लाख की है। इस क्षेत्र की मूल प्रजा प्रादिवासी भील जाति है। पालों में रहने वाले भीलों वा मेंणों की बोली 'भीली' है, कटारा विभाग की बोली पलवाड़ी है और शेष समग्र बागड़ की भाषा बागड़ी बोली है। बागड़ी मुख्य बोली है । भीली, पलवाड़ी तथा कटारी बोलियाँ सिर्फ भील क्षेत्रों तक ही सीमित है। महीसागर इस प्रदेश को डुगरपुर और बाँसवाड़ा के दो मुख्य भागों में विभाजित करती बहती हुई गुजरात में खंभात की खाड़ी में जा गिरती है। समग्र प्रदेश पठारभूमि (Forested upland) है। भील, ब्राह्मण, पटेल (गुजराती तथा बागड़िया), राजपूत, बनिये तथा अन्य लगभग सभी वर्गों की पंचरंगी प्रजा का इसमें निवास है। मेवाड़, मालवा तथा गुजरात, तीनों प्रदेशों से प्रजा का आवागमन तथा संबंध होने से भाषा का स्वरूप तथा लोक साहित्य का रूप भी मिश्रित है। बागड़ क्षेत्र में लिखित साहित्य नहींवत् है । इस प्रकार में कुछ शिलालेख, पट्टावलियाँ वंशावलियां व प्रशस्तियाँ, ताम्रपत्र तथा नामा-बहियाँ ही गिनाये जा सकते हैं। परंतु इस विशाल भूभाग का लोक साहित्य प्रति समृद्ध है। आज तक यह अप्रकाशित एवम् मौखिक रूप से ही प्रचलित है । इसमें (१) ऐतिहासिक वीर काव्य (Historical Ballads), (२) लोकगीत (३) भजन (४) पारसियाँ या पहेलियाँ (Riddles) (५) लोकोक्तियां एवं मुहावरे, (६) लघुकथाए (७) भविष्यवाणियां तथा (८) धार्मिक वार्ताएं आदि मुख्य हैं। बागड़ का समग्र उपलब्ध लोक साहित्य प्राज बागड़ी बोली में है। यह बोली शौरसेनी से उत्पन्न मानी जाती है। शौरसेनी उत्तर की तरफ से धीरे २ धीरे ब्रजभाषा में परिणित हुई तथा दक्षिण में बढ़कर वह पुरानी-पश्चिमी राजस्थानी और उसमें से मारवाड़ी एवं गुजराती बनती हुई उसी की एक शाखा 'बागड़ी' बन गयी। इस बोलो का स्वरूप मुख्यतः गुजराती से तथा मालबी, मेवाड़ी, भीली आदि के मिश्रण से बना है। इसमें ब्रज, अवधी, मारवाड़ी, खड़ी बोली आदि के शब्दों का भी समावेश है। इस खिचड़ी भाषा का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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