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________________ डा. कन्हैयालाल सहल कबीर यह घर प्रेम का, खाला का घर नांहि । सीस उतारै हाथि करि, सो पैसे घर मांहि ॥१६॥ कबीर निज घर प्रेम का, मारग अगम अगाध । सीस उतारि पग तलि धरै, तब निकटि प्रेम का स्वाद ॥२०॥ इसी प्रकार निम्नलिखित साखियों में भी प्रकारान्तर से शीश उतार कर देने की बात कही सीस काटि पासंग दिया, जोव सरभरि लीन्ह । जाहि भावे सो पाइ ल्यौ, प्रेम पाट हम कीन्ह ॥२२॥ सूरे सोस उतारिया, छाड़ी तन को पास । प्रागें थें हरि मुलकिया, पावत देख्या दास ॥२३॥ कबीर की मान्यता है कि प्रेम न तो किसी खेत में उत्पन्न होता है और न किसी बाजार में बिकता है। राजा-प्रजा कोई हो, इसे तो शीशदान द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है : प्रेम न खेतों नींपजे, प्रेम न हाटि बिकाइ। राजा परजा जिस रुचे, सिर दे सो ले जाई ॥२१॥ जायसी ने भी अपने “पद्मावत” में सिर काट कर रख देने की बात कही है :--- साधन सिद्धी न पाइन, जौ लहि साधन तप्प । सोई जानहिं वापुरे जो सिर कहिं कलप्प ॥ (प्रेम खण्ड) पेम पहार कठिन विधि गढ़ा । सो पं चढ़ सीस सों चढ़ा। जहां तक मेरी जानकारी है, संस्कृत-साहित्य में ऐसा कोई प्रसंग उपलब्ध नहीं होता जहां मरण को इस प्रकार काम्य और स्पृहणीय माना गया हो। श्री दिनकर के शब्दों में "मृत्यु को काम्य मानने का भाव भारतीय साहित्य में कबीर के पहले नहीं मिलता है। वह देश निवृत्तिवादी था। यहां के दर्शनाचार्य लोक को असत्य और परलोक को सत्य बताते थे। लेकिन, इस दर्शन का सहारा लेकर कबीर से पहले के किसी भी भारतीय कवि ने यह नहीं कहा था कि चूंकि परलोक सत्य और लोक असत्य है, इसलिए साधक को चाहिए कि वह, शीघ्र से शीघ्र, मृत्यु को प्राप्त हो जाय।" बहुत सम्भव है, जैसा श्री दिनकर कहते हैं, मृत्यु भय की वस्तु नहीं, वह स्पृहणीय है, काम्य है, इस भाव का प्रचलन भारतीय साहित्य में सूफी परम्परा के प्रभाव से बढ़ा है। सूफियों का दर्शन यह था कि जीव ब्रह्म से बिछुड़ कर जीव हुआ है। जब से जीव ब्रह्म से अलग हुआ, तभी से वह वियोग में है । इस वियोग की समाप्ति तब होगी, जब जीव शरीर से निकल कर स्वतन्त्र हो जायगा । जीव की स्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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