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________________ XLED भावना के सुमन - महासती रत्नज्योति ___मैं अपने आपको सौभाग्यशालिनी मानती हूँ परम विदुषी साध्वी रत्न कुसुमवती जी की गुण गरिमा का वर्णन करने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ है । जल की नन्हीं सी बूंद में कोई चमत्कार ॥ नहीं होता. पर वही नन्हीं बंद कमलिनी के पत्तों का संस्पर्श पा लेती है तो अनमोल मोती की तरह चमकने लगती है। ___ नाम के साथ जब गुण का संयोग होता है तब वह नाम यथार्थ होता है । महासती कुसुमवती जी कुसुम की तरह ही कोमल स्वभाव की धनी हैं। उनमें विद्वत्ता है किन्तु विद्वत्ता का अहंकार नहीं है। उनके गले में सहज माधुरी है । जब वे गाती हैं तब श्रोता झूमने लगते हैं। वे जब प्रवचन करती हैं तो उनके प्रवचन पीयूष का पान कर भव्य आत्माएँ त्याग-वैराग्य के पथ पर सहज रूप से बढ़ जाती हैं। आपकी प्रवचन शैली सरल है। कठिन से कठिन विषय को सरल रूप में प्रस्तुत करने में आप दक्ष हैं। श्रद्धेय सद्गुरुणी जी श्री पुष्पवती जी म० की गुरुणी बहिन होने के कारण अनेकों बार महासती कुसुमवती जी के साथ रहने का अवसर मिला। मदनगंज में साथ-साथ वर्षावास का भी अवसर मिला। बहुत ही सन्निकटता से उनके जीवन को देखने का अवसर प्राप्त हुआ है । उस आधार से मैं कह सकती हैं कि उनमें सरलता, व्यवहार में निश्चलता आदि ऐसे सद्गुण हैं जिनके कारण उनका अभिनन्दन समारोह मनाया जा रहा है । मैं जिन शासन देव से यही मंगल कामना करती हूं कि वे दीर्घायु बनें और जिनधर्म की प्रबल प्रभावना श्रद्धा-सुमन -साध्वी श्री चन्द्रावतीजी म. जिनके सद्गुण की महक रही फुलवारी, धन्य कुसुमवतीजी सती बाल-ब्रह्मचारी ।।.... मेवाड़-धरा में देलवाड़ा प्रियकारी, लिया जन्म आपने हर्षित जनता सारी, गणेशलाल जी पिता हुए सुखकारी.... कैलाशकुंवर जी मात आपकी प्यारी, ली दीक्षा साथ में मात-सुता हितकारी, गुरुणी जी सोनकुंवर हुए तपधारी.... गुरुदेव आपके पुष्कर मुनिजी ज्ञानी उपाध्याय हैं और बड़े ही ध्यानी लघुवय में आपने व्रत लिया अतिभारी.... संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी और गुजराती कई भाषा सीखी आगम में रंगराती शिष्या और प्रशिष्या हैं गुणधारी.... युग-युग तक जीओ यही भावना मेरी रहे सौरभ फैलती यही कामना मेरी 'चन्द्रावती' करती अर्ज सुनो गुणधारी.... वन्दन अभिनन्दन -महासती सिद्धकुवरजी सती 'कुसुम' का अभिनन्दन शत बार है, वन्दना करते सदा सुखकार है। उदयपुर की पुण्य धरा धन्य है 'कुसुम' महके जहाँ बड़े श्रेयकार है.... मात-पिता का नाम उज्ज्वल कर दिया, त्यागमय जीवन बना प्रियकार है। बालवय में आपने संयम लिया, ज्ञान की आई अजब बहार है.... ज्ञानी-ध्यानी ये बड़े विद्वान हैं, जैन शासन के कुसुम श्रृंगार है.... युगों-युगों तक आपकी सौरभ रहे सिद्ध अभिनन्दन करे शत बार है.... मात-उम महधरा करें। प्रथम खण्ड: श्रद्धार्चना - साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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