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________________ सत्यशाल की अमर-साधिका, परमाराध्या जैनागमों का अतीव गम्भीर एवं तल-स्पर्शी परिशीलन व अनुशीलन किया और उच्चस्तरीय परीक्षाएँ समुत्तीर्ण कीं आप जैन सिद्धान्ताचार्य जैसी विशिष्ट उपाधि से विभूषित हुईं। यह उपाधि आपके लिए उपाधि रूप न होकर समाधि-रूप हैं । आपने जहां एक ओर साहित्य के क्षेत्र में विकास किया, वहीं दूसरी ओर अध्यात्म के जगत में बहुमुखी प्रगति की। अतः आप 'अध्यात्मयोगिनी' पदवी से सम्मानित हुईं। पर सत्य है कि यह पदवी आप जैसी विरल विभूति से स्वयं गौरवान्वित हुई । आपने साहित्य और अध्यात्म की तरह प्रवचन कला में भी विशेष रूप से दक्षता प्राप्त की । आपकी प्रवचन-कला प्रारम्भ से ही चन्द्रकला की भाँति वर्द्धमान होती गई । अतः आप 'प्रवचन भूषण' के महनीय अलंकरण अलंकृत हुई। आपका विशिष्ट जीवन विलक्षण विशेषताओं का एक ऐसा पावन संगम है कि दर्शक विस्मयविमुग्ध हो उठता है कि एक साधिका में इतने गुणों का सहजरूपेण समावेश कैसे हो गया ? पर जो भी आपके पावन सान्निध्य में आता है, कह उठता है कि यह श्रमणी जगत की दिव्यमणि है । मेरा आपसे जिस क्षण साक्षात्कार हुआ वह क्षण मेरे लिए प्रेरणादायी बना और मैं बहिर्जगत से विमुख होकर अन्तर्जगत में प्रविष्ट होने हेतु तत्पर हो गई और मेरी यह उत्कण्ठा नित्य निरन्तर वर्द्धमान होती गई और मेरी मनोभूमि पर बीजारोपण में आपकी तरह आराध्य स्वरूप, | साहित्य व साधना के ज्योतिस्तम्भ श्री राजेन्द्रमुनि जी म. एवं असीम आस्था की भव्य प्रतिमा, वैदुष्य और श्रामण्य की प्रशस्त - प्रतिमा, दिव्यप्रभाजी म० का भी मूल्यवान योगदान रहा जिससे मैं आपके श्री चरणों में दीक्षिता हुई तब से अब तक मेरी अनुभूति के दर्पण में आपके व्यक्तित्व के बहुआयामी आदर्श चित्र प्रतिबिम्बित हुए जिससे मैं स्वयं लाभान्वित प्रथम खण्ड : श्रद्धाना JaEducation Internation हुई । मेरी मंगलमनीषा है कि आपका आशीर्वाद मेरे लिए वरदान रूप सिद्ध होगा । आपश्री प्रतिपल, प्रतिक्षण, परम स्वस्थ रहें । और आपकी कीर्ति कौमुदी दिग् दिगन्त में जगमगाती रहे तथा मैं ज्ञान, दर्शन व चारित्र के उत्तुंग शिखर पर आरोहण करती हुई, जिनशासन की प्रभावना को बढ़ाती रहूँ । G यथानाम तथागुण - जैन साध्वी इन्दुप्रभा " प्रभाकर" परम विदुषी साध्वी रत्न महासती जी १००७ श्री कुसुमवती जी म० सा० की दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के उपलक्ष्य में प्रकाशमान " कुसुम अभिनन्दन ग्रन्थ " में मेरी भी भावों की कुसुमावलि से गुम्फित उद्गार माला समर्पित है । आपका प्रेरणादायी पावन जीवन त्याग, तप की अद्वितीय निधि है । चन्दन की तरह आपने सर्वत्र अपनी सौरभ से गाँव-गाँव, नगर-नगर, डगर-डगर सुरभित किया है । आपका सान्निध्य पाकर समस्त मानव समाज धन्य होता रहा है । क्योंकि आपने अपनी गुण सम्पदा से मानव - जोबन को सुवासित किया है । आपका हृदय, करुणा, दया, औदार्यभाव से सदैव ओतप्रोत रहा है । आपने सदा जनमानस को श्रेय के लिए प्रेरणा देकर मानव जीवन को सार्थक करने के लिए सन्नद्ध किया है। किं बहुना ! संयमी जीवन के अर्द्ध शताब्दी के शुभावसर पर महाप्रभु से हार्दिक शुभकामना करती हूँ कि आपश्री का निरोग जीवन जैन-जगत् तथा मानव समुदाय को श्रेय पथ प्रदान करता रहे । इन्हीं भावों की मुक्तावली के साथ । साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ ૪૨ www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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