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________________ | आकाश में उदीयमान सहस्रकिरण दिवाकर को सजावट है, न औपचारिकता है, किन्तु जो कुछ भी छूने जैसा है। फिर भी मैं श्रद्धा और भक्ति का है वास्तविकता है । अपने आपको बनाना उन्हें नहीं - । अक्षय-संबल लेकर अपनी हार्दिक भावना को मूर्त आता। इसलिए उन्हें दिखावट पसन्द नहीं है। । रूप दे रही हूँ। उनका जीवन वस्तुतः स्फटिक मणि की भांति पार दर्शी है। जिसमें दुराव और छिपाव की दुरभि___मैंने अनन्त श्रद्धा की आंख से नहीं, किन्तु सन्धि नहीं है । न दोहरा व्यक्तित्व है, न दोहरा प्रत्युग्र-प्रतिभा और पैनी-दृष्टि से आपके जीवन को कृतित्व है। वे तात्त्विक के साथ सात्त्विक भी हैं। निरखा है, परखा है, और मुझे स्पष्टत: परिबोध उनकी तात्त्विकता और सात्त्विकता का मणिहआ-वैडर्यमणि की भांति परम-श्रद्धया गरुणी कांचन संयोग देखते ही बनता है जिससे आपके जी के जीवन का प्रत्येक पहलू प्रकाशमान है और जीवन-स्वर्ण में अप्रतिहत निखार आया है। जो भी उनके पावन सान्निध्य में पहुँचता है, वह भी उस अलौकिक आलोक से जगमगा उठता है, ___गुरुणीवर्या का जीवन सरोवर नहीं, गंगा की 70 यह मेरा आत्मानुभव है, आत्मानुभव स्वयं में एक . कल-कल, छल-छल करती हुई प्रवाहमान निर्मल || धारा है, जो अपने निर्धारित-संलक्ष्य की ओर अकाट्य प्रमाण है। प्रगतिशील है। वास्तव में आपका जीवन सद्गुणों श्रद्धास्पद गुरुणी जी की वाणी सिंहगर्जना के का गुलदस्ता है। जिसकी मधुर-सौरभ से जनजीवन समान अदम्य उत्साह से आपूरित है, साथ ही भी सुवासित है । आपके गुण-गरिमा को, मेरा एक । वीणा के तार के समान मधर झंकार से संयक्त कण्ठ नहीं, लक्ष-लक्ष कण्ठ भी गाने के लिये पर्याप्त 603 होकर जब भाषा के दिव्य-रूप में बाहर निकलती नहीं है। आप उस अखण्ड-अनन्त प्रकाश-पुंज के | है तो श्रोता समूह का मन-मयुर झूम-झूम उठता है, समान हैं, जो अज्ञान की अमावस्या के प्रगाढ़। वे एकाग्रमन होकर प्रशान्त और प्रफल्लित चित्त से तिमिर को भी चुनौती देकर जन-जन के मन-नभ श्रवण करने में विशेष रूप से तन्मय हो जाते हैं। को अपनी शुभ्र ज्योति से प्रकाशमान कर देती है । इसका सम्पूर्ण श्रेय मैं गुरुणी-मैय्या की मधु-मधुर मैंने गुरुणीवर्या के जीवन वृत्त के विषय में जो युक्त वाणी-वीणा को उतना नहीं देती, जितना वर्णन-विवरण किया, वह भावुकता या भक्ति अतितदनुरूप ढले हुए अध्यात्म-साधनामय जीवन को, रेक के प्रवाह में प्रवाहित या आकण्ठ-निमग्न होकर उनकी वैराग्यमयी त्यागवृत्ति को और उनकी परम आलेखित नहीं किया। किन्तु गहराई से उनके सरल अति भव्य आत्मा को। जीवन-वारिधि की अगाधता को निहारा है, सूक्ष्म दृष्ट्या देखा है। मुझे अर्न्तबोध हुआ-आपका गुरुणीवर्या के जीवन में उच्चार, विचार एवं जीवन महतोमहीयान् है। शिरसिशेम्बरायमान | आचार की त्रिवेणी सदा एक रूप, एक रस होकर उत्तंग सुवर्ण सुमेरु पर्वत है। प्रवाहित होती रही है। यही प्रमुख कारण है कि । ____ अन्तर्मन की अतल गहराई से संयमसाधना गुरुवर्या के मुखारविन्द से निःसृत प्रति शब्द प्रति __की अर्ध-शती पर भावपूर्ण अभिनन्दन और विनम्र भव्य आत्मा द्वारा समादरणीय और समाचरणीय वन्दनार्चन। होता है । यह एक अनुभूत तथ्य है, ध्रुव कथ्य है। परमाराध्या गुरुणी मैय्या का जीवन एक अखण्ड-आदर्श जीवन है, जीवन में न वनावट है, न प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना 0 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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