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________________ ) शुभ कामना । --पं० श्री हीरामुनिजा हिमकर' अस्थिरं जीवनं लोके, अस्थिरं धन-यौवनं । अस्थिरा पुत्रदाराश्च, धर्म कीर्ति द्वयं स्थिरम् ।। सतीजी का ज्ञान दर्शन चारित्र निर्मल है, इन्हीं रत्नत्रय का अभिनन्दन किया जा रहा है। आपश्री चिरंजीवी बन जैन धर्म की जाहोजलाली करें, यही मेरी शुभ कामना तथा श्रद्धा सुमनांजलि अर्पित है। सती सुकुमाला श्री कुसुमवती जी म० का पाबन जीवन सहज रूप से लोकप्रिय बना रहा है। यही मूलभाव है जो जैन जनता आपश्री का हृदय से अभिनन्दन कर रही है। सतीजी का मन सरल, है वचन में वह जादू है जो सभा प्रवचन सुन मंत्र मुग्ध रह जाती है। जीवन जिनआज्ञा अनुसार तैयार हो जाये फिर मन की धारी जरूर पार पड़ती है । कहा भी है साफी की सुधरे सदा, कभी न गोता खात । कभी न पड़े पाधरी, मन मैले की बात ।। वि० सं० १६६३ के फाल्गुन में महासती जी ने संयम प्राप्त किया और वि० सं० १९६५ का पोसवदी ५ के दिन मैंने भागवती दीक्षा स्वीकार की। यही कारण है कि लम्बे समय से मैं सतीजी का जीवन विकास देखता आ रहा हूँ। सतीजी का हर कार्य प्रगति पर रहा है यह पूर्वकृत पुण्य का फल वन्दन शत-शत बार -साध्वी हर्षप्रभा श्री कुसुमवती गुणवान, वन्दन शत-शत बार... माता कैलाश की लाडली, पिता गणेश कुल अवतार"" उदयपुर में जन्मिया, मेवाड़ प्रान्त उजियार... कुसुम ज्यों आप खिल रह्या, हाँ सारे विश्व मंझार". लघुवय में संयम लिया, है तैयार वैराग्य अपार सोहन सती की शिष्या प्रथम, ये श्रमग संघ शृंगार"" शिष्या आपकी तीन हैं, तीनों ही गुण भण्डार" मासी गुरुणी युग-युग जोओ, सदा होवे जय-जयकार" अभिनन्दन करू आपका, हर्ष को है हर्ष अपार". नैवाकृति फलति नैव कुलं न शीलं, विद्यापि नैव न च यत्न कृतेऽपि सेवा। भाग्यानि पूर्व तपसा खलु संचितानि, काले फलन्ति पुरुषस्य यथैव वृक्षाः ।। भाग्यवंत वही है जो जीवन सुखमय पले फिर आत्म कल्याण में आगे बढ़े। कहा भी है सरस-सरस मधुकर लहे, जो सेवे वनराय, घुण सूं जाणे जीवड़ो, सूखा लक्कड़ खाय । सतीजी लघुवय में संयम ले सद्गुरुणी सा० श्री सोहनकुंवरजी म. सा० का नाम रोशन कर दिया। आपश्री की शिष्याएं भी सभी शिक्षाशील, विनीत एवं यशस्विनी हैं । यश ही संसार में अमर बना रहता है । कहा है ल प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ । GOA57 www.poly.org Jain Education International or Private & Personal Use Only
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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