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________________ जसवन्तगढ़ निवासी उदारमना कर्मठ कार्यकर्ता श्रीमान चुन्नीलाल साहब भोगर का जन्म वि० सं० १९८४ को हुआ, धार्मिक परिवार होने के कारण बचपन से ही आपके जीवन में धर्म भावना फलीभूत होती रही, आपका पाणिग्रहण गुलाबबाई के साथ हुआ जो एक सद्धर्म परायण उदारमना सुधाविका थी। गुलाबबाई का जन्म वि० सं० १९८५ में हुआ, एवं स्वर्गवास १४ जनवरी सन् १९८८ को हुआ। श्रीमान चुन्नीलाल जी साहब के दो सुपुत्र श्रीमान वसन्तीलाल जी साहब एवं श्रीमान गणेशलाल जी साहब हैं । एवं श्रीमती कचनदेवी वसन्तीलाल जी की धर्म पत्नि है तथा श्रीमती रंजनदेवी गणेशलाल जो की धर्म पत्नि हैं। चन्द्र शकुमार, विपुल कुमार, दीपेशकुमार वसन्तीलाल जो के एवं विकासकुमार गणेशलाल जी के सुपुत्र हैं। आदरणीय स्व. श्रीमती गुलाबबाई भोगर चुन्नीलालजी साहब की ४ सुपुत्रियाँ भागवतीदेवी, मीनादेवी, जसवन्तगढ़ पुष्पादेवी, लीलादेवी भी धर्मपरायणा हैं। गतवर्ष १९८६ में पूज्य गुरुदेव श्री एवं उपाचार्य श्री के चातुर्मास में आपने तन मन धन से जो समाज सेवा की है वह सदा स्मर णोय रहेगी। आपने अपनी धर्म पत्नि की पुण्य स्मृति में प्रस्तुत ग्रन्थ में उदारतापूर्वक सहयोग दिया है। इसी प्रकार आपके भतीजे आदरणीय मोहनलालजी साहब भोगर भी एक उदारमना समाज सेवी व्यक्ति हैं, आपका जन्म वि० सं० १९६२ में जसवन्तगढ़ में हुआ। आपकी धम पनि का नाम अ० सौ० चम्पाबाई हैं। वर्तमान में आपके ४ सुपुत्र हैं जिनके नाम-माँगीलाल, जसराज, नरेशकुमार, हितेशकुमार हैं। आपके बड़े सपुत्र मांगीलाल जी की धर्मपत्नी का नाम श्रीमती मधुबाला हैं। इस प्रकार काका भतीजा का यह सम्पूर्ण परिवार धर्म पर आस्थावान रहा है । आपके सूरत में वस्तों का व्यवसाय निम्न फर्म के रूप में हैं0 शाह अनिल कुमार, मोहनलाल एण्ड कं० डी-१०१६, टैक्सटाइल मार्केट, रिंग रोड, सूरत-२ जीवन रथ के संचालन हेतु नर की भांति नारी का भी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। नारी जाति का अपना एक इतिहास है, इसका महत्व सदा सर्वदा से हैं इसीलिए कहा जाता है सो शिक्षकों का कार्य एक मातस्वरूपा नारी करती हैं क्योंकि नारी पुरुष को जिस ढांचे में ढालना चाहती है उसी ढांचे में ढाल सकती हैं। श्रीमती रमादेवी उज्वल का जीवन भी एक सत्य सदाचार का प्रतीक रहा है। आपको प्रेरणा व सत्संस्कारों के कारण ही आपकी सुपुत्री साध्वी गरिमाजी एम. ए. ने संयम व्रत अंगीकार किया है, आपके दो सपूत्र हैं-कूलदोप एवं प्रदीपकुमार एवं ३ सुपुत्रियाँ हैं अशोका, गीता और रीता । गोता ही साध्वी गरिमा जी के रूप में विदुषी साध्वी रत्न श्री कुसुमवतीजी श्रीमती रमादेवी उज्ज्वल की सुशिष्या हैं। प्रस्तुत अभिनन्दन ग्रन्थ में आपने स्वतः प्रेरित _ मेरठ (उ. प्र.) होकर उदारतापूर्वक दान दिया है। आशा है भविष्य में इसी प्रकार सहयोग मिलता रहेगा। ( १० ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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