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________________ मार्ग बताने वाली चेलना थी । चण्डप्रद्योत भगवान स्वयं तो इसके प्रति जागरूक रहती ही हैं अपनी महावीर की शरण में मृगावती के कारण पहुँचे। शिष्याओं को भी सदैव सचेत करती रहती हैं । 12 हरिभद्र को सन्मार्ग का बोध याकिनी महत्तरा ने इसके अतिरिक्त आप अपनी शिष्याओं के अध्ययन कराया और तुलसी को तुलसी रत्नावली ने अध्यापन के प्रति जागरूक रहती हैं। इसी का परिबनाया। णाम है कि आपकी सभी शिष्याएँ/प्रशिष्याएँ उच्च जैनधर्म में नारी साधना पथ पर विकास करते शिक्षा प्राप्त हैं और अध्ययन का यह क्रम आज भी हुए तीर्थकर पद तक पहुँच सकती है । इसका ज्व निरन्तर चल रहा है। लन्त उदाहरण तीर्थंकर भगवती मल्ली हैं। कुछ वर्षों से महासतियों के साधनामय जीवन जैन साध्वियों की एक सविशाल परम्परा री पर भा अभिनन्दन ग्रन्थों के प्रकाशन का सिलसिला है। आदि तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव से लेकर __ आरम्भ हुआ है। अभी तक आचार्यों अथवा भगवान् महावीर तक और फिर वर्तमान तक देखें विशिष्ट साधुओं को लक्ष्य कर ही इस प्रकार के ' आयोजन होते रहे हैं किंतु अब यह एक नई परम्परा Hा तो हम पाते हैं कि साधुओं की तुलना में साध्वियां - ही अधिक रही हैं । इतना होने पर भी आज साध्वी चली है जो स्वागतयोग्य है । ऐसे प्रयासों के माध्यम से जहां एक ओर साध्वी समाज का इतिसमाज का क्रमबद्ध इतिहास उपलब्ध नहीं होता है । और आज भी समाज इस दिशा में उदासीन ही हास प्रकट हो जाता है । वहीं अनेक अछूते विषयों पर भी लेखन सामग्री उपलब्ध हो जाती है तथा बना हुआ है। जिन महासतीजी के जीवन के वैशिष्टय के प्रति ज्ञानाराधिका, जपसाधिका, दया और सरलता ग्रन्थ समर्पित होता है, उससे समाज परिचित हो । की प्रतिमूर्ति, प्रेम और वात्सल्य की देवी, विनय- जाता है और उनके गण अनुकरणीय हो जाते हैं। विवेकसम्पन्ना, क्षमामूर्ति, मितभाषी, मधुर व्यवहारी, इस अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रकाशन से मैं सन्तोष प्रभावक प्रवचनकार, बालब्रह्मचारिणी, परम विदुषी महासती श्री कसमवतीजी म. सा. आचार्य का अनुभव कर रहा हूँ और इस अवसर पर मैं श्री अमरसिंह जी म० सा० के गच्छ की एक विदुषी - महासती श्री कुसुमवतीजी म. सा० का हार्दिक साध्वीरत्न हैं। अपने संयमी जीवन के आप पचास : अभिनन्दन करता हूँ तथा यही शुभकामना करता से भी अधिक वर्ष व्यतीत कर चकी हैं। इस संयम- हूँ कि वे पूर्णतः स्वस्थ एवं प्रसन्न रहते हए दीर्घकालीन जीवन में आपने देश के दरस्थ एवं निकट काल तक जनशासन की सेवा करते हए अपने क्षेत्रों में विचरण करते हुए जैनधर्म की अच्छी . के अनुयायियों को मार्गदर्शन प्रदान करती रहें । एक प्रभावना की है। बार पुनः हार्दिक अभिनन्दन ! आपके जीवन की अनेकानेक विशेषताएँ हैं । व्यक्तित्व प्रभावशाली है । प्रवचन शैली मधुर और 7 प्रभावोत्पादक है । आपकी सबसे बड़ी विशेषता तो ऋण, व्रण, अग्नि और कपाय (दोष) इनका छोटायह है कि आपका हृदय करुणा से ओतप्रोत है। सा अंश भी हो, तो उससे सावधान रहना चाहिए। आप पर-दुःख कातर हैं। आप किसी भी प्राणी को समय पाकर ये विस्तार पा जाते हैं। दुःखी नहीं देख सकती हैं। -आवार्य भदबाहु संयमपालन के प्रति आप सदैव सजग रहती हैं। प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना (C) साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Diste Personalise Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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